SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८०२ भगवती सूत्र-श. १० उ. ३ देवों के मध्य में होकर निकलने की क्षमता बीच में होकर जा सकता है ? ३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, परन्तु वह प्रमत्त (असावधान) हो तो जा सकता है। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह देव, उस सामनेवाले देव को विमोहित करके जाता है, या विमोहित किये बिना जाता है ? ___४ उत्तर-हे गौतम ! वह देव, सामने वाले देव को विमोहित करके जा सकता है, विमोहित किये बिना नहीं जा सकता। ५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह देव, उसे पहले विमोहित करता है और पीछे जाता है, अथवा पहले जाता है और पीछे विमोहित करता है ? ५ उत्तर-हे गौतम ! वह देव, उसे पहले विमोहित करता है और पीछे जाता है, परन्तु पहले जाकर पीछे विमोहित नहीं करता। ६ प्रश्न-महिड्ढीए णं भंते ! देवे अप्पड्ढियस्स देवस्स मज्झं. मज्झेणं वीइवएज्जा ? ६ उत्तर-हंता, वीइवएजा। ७ प्रश्न-से भंते ! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू ? ७ उत्तर-गोयमा ! विमोहित्ता वि पभू, अविमोहेत्ता वि पभू । ८ प्रश्न-से भंते ! किं पुञ् िविमोहित्ता पच्छा वीइवएजा, पुग्विं वीइवइत्ता पच्छा विमोहेजा ? '८ उत्तर-गोयमा ! पुट्विं वा विमोहेत्ता पच्छा वीइवएज्जा, पुलिं पा वीइवइत्ता पच्छा विमोहेजा। . ९ प्रश्न-अप्पड्ढिए णं भंते ! असुरकुमारे महड्ढियस्स असुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy