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शतक १० उद्देशक ३
देव की उल्लंघन शक्ति
१ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी- आइटीए णं भंते ! देवे जात्र चतारि, पंच देवावासंतराई वीइक्कंते, तेण परं परिड्ढीए ?
१ उत्तर - हंता, गोयमा ! आयटीए णं तं चेव, एवं असुरकुमारेवि । वरं असुरकुमारावासंतराई, सेसं तं चैव । एवं एएणं कमेणं जाव थणियकुमारे, एवं वाणमंतरे, जोइसिए, वेमाणिए, जाव तेण परं परिड्ढीए ।
कठिन शब्दार्थ - आइड्ढीए - आत्मऋद्धि (स्वयं की शक्ति ) से, परिड्ढीए दूसरी ऋद्धि से ।
भावार्थ - १ प्रश्न - राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा- हे भगवन् ! देव, अपनी शक्ति द्वारा यावत् चार-पांच देवावासों का उल्लंघन करता है और इसके बाद दूसरे की शक्ति द्वारा उल्लंघन करता है ?.. १ उत्तर - हाँ, गौतम ! देव अपनी शक्ति द्वारा चार-पांच देवावासों का उल्लंघन करता है और उसके बाद दूसरी शक्ति ( वैक्रिव की शक्ति ) द्वारा उल्लंघन करता है । इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी जानना चाहिये, परंतु वे अपनी शक्ति द्वारा असुरकुमारों के आवासों का उल्लंघन करते हैं। शेष पूर्ववत् जानना चाहिये । इसी प्रकार इसी अनुक्रम से यावत् स्तनित कुमार, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिये, यावत् 'वे अपनी शक्ति से चार पांच आवासों का उल्लंघन करते हैं, इसके बाद दूसरी शक्ति (स्वाभाविक शक्ति के अतिरिक्त वैक्रिय शक्ति) से उल्लंघन करते हैं ।
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