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भगवती सूत्र-शः १० उ. २ भिक्षु प्रतिमा और आराधना
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होती है ।
वेदना के दो भेद है । यथा-निदा और अनिदा । मन के विवेक सहित जो वंदना वेदी जाय वह 'निदा' वेदना है और जो मन के विवेकपूर्वक न वेदी जाय वह 'अनिदा' वेदना है।
नरयिक, भवनपति, वाणव्यन्तर, तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय और मनुष्य-इन चांदह दण्डक के जीव दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं । अर्थात् संजीभूत निदा वेदना वेदते हैं और असंजीभूत अनिदा वेदना वेदते हैं । पांच स्थावर और तीन विकलेन्द्रिय असंज्ञीभूत एक अनिदा वेदना वेदते हैं। ज्योतिषी और वैमानिक देवों के दो भेद हैं। यथा-मायी-मिथ्यादृष्टि
और अमायीसमदृष्टि । मायी-मिथ्यादृष्टि अनिदा वेदना वेदते हैं और अमायी-समदृष्टि निदा वेदना वेदते हैं।
वेदना सम्बन्धी विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के पैतीसवें पद में है।
भिक्ष प्रतिमा और आराधना
५-मासियं णं भंते ! भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णिचं वोसटे काए चियते देहे-एवं मासिया भिक्खुपडिमा णिरवसेसा भाणियबा, जहा दसाहिं जाव 'आराहिया भवई'।
६-भिक्खू य अण्णयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता से णं तस्स ठाणस्स अणालोइया अपडिक्कंते कालं करेइ, पत्थि तस्स आरा. हणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ, अस्थि तस्स आराहणा। भिक्खू य अण्णयर अकिवटाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ-'पच्छा वि णं अहं चरिमकालसमयंसि एयरस ठाणस्स आलोएस्सामि जाव पडिकमिस्सामि, से णं तस्स ठाणस्स
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