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भगवती सूत्र - श. १० उ. २ योनि और वेदना
अन्य प्रकार से योनि के तीन भेद कहे गये हैं । यथा - कूर्मोन्नता, शंखावर्त्ता और वंशीपत्रा । जो योनि कछुए की पीठ के समान उन्नत हो, उसे 'कूर्मोन्नता' योनि कहते हैं । जो योनि शंख के समान आवर्त्तवाली हो, उसे 'शंखावर्त्ता' यौनि कहते हैं । बांस के दो पत्तों के समान सम्पुट मिले हुए हों, उसे 'वंशीपत्रा' योनि कहते हैं ।
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चक्रवर्ती की श्रीदेवी के शंखावर्त्ता योनि होती हैं। उसमें बहुत से जीव और जीव के साथ सम्बन्ध वाले पुद्गल आते हैं और गर्भ रूप से उत्पन्न होते हैं । सामान्यतः चय ( वृद्धि ) और विशेषत: उपचय को प्राप्त होते हैं, किन्तु अति प्रबल कामाग्नि के परिताप से नष्ट हो जाने के कारण गर्भ की निष्पत्ति नहीं होती इस प्रकार प्राचीन आचार्यों का कथन है। तीर्थंकर, चक्रवती, वलदेव और वासुदेव - इन उत्तम पुरुषों की माता के कूर्मोन्नता योनि होती है । शेष सभी संसारी जीवों की माना के वंशीपत्रा योनि होती है ।
योनि सम्वन्धी विस्तृत विवेचन और अल्पबहुत्व आदि प्रज्ञापना सूत्र के नांवें 'योनि पद' में है ।
जो वेदी जाय उसे 'वेदना' कहते हैं। उसके तीन भेद हैं। यथा-शीत वेदना, उष्ण . वेदना और शोतोष्ण वेदना । नरक में शीत और उष्ण दो प्रकार की वेदना पाई जाती है । शेष २३ दण्डकों में तीनों वेदनाएँ पाई जाती हैं। दूसरी प्रकार से वेदना चार प्रकार की कही गई है । यथा - द्रव्य से वेदना, क्षेत्र से वेदना, काल से वेदना और भाव से वेदना । चौबीस दण्डक में चारों प्रकार की वेदना पाई जाती हैं ।
वेदना के तीन भेद हैं। यथा- शारीरिक वेदना, मानसिक वेदना और शारीरिकमानसिक वेदना | पांच स्थावर और तीन विकलेन्द्रिय, इन आठ दण्डकों में एक शारीरिक वेदना पाई जाती है । शेष सोलह- दण्डकों में तीनों प्रकार की वेदना पाई जाती है ।
पुनः - वेदना के तीन भेद हैं । यथा - सातावेदना, असातावेदना और साताअसातावेदना | चौवीस दण्डक में यह तीनों प्रकार की वेदना पाई जाती है ।
पुनः - वेदना के तीन भेद हैं । यथा - दुःखा वेदना, सुम्ना वेदना और अदुःखसुखा वेदना। तीनों प्रकार की वेदना चौबीस ही दण्डक में पाई जाती है ।
वेदना के दो भेद हैं । यथा - आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी । स्वयं कष्ट को अंगीकार करना जैसे - केश- लोच आदि 'आम्पुपगमिकी' वेदना है । स्वभात्र से उदय में आने वाली वेदना - ज्वरादि 'अपक्रमिकी' वेदना है । तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय और मनुष्य में यह दोनों प्रकार की वेदना होती है। शेष बाईस दण्डक में एक औपक्रमिकी वेदना
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