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________________ १७९४ भगवती सूत्र-श. १० उ. २ योनि और वेदना णेरइया णं भंते ! किं दुक्ख वेयणं वेदेति, सुहं वेयणं वेदेति, अक्खमसुहं वेयणं वेदेति ? गोयमा ! दुवख पि वेयणं वेदेति, सुह पि वेयणं वेदेति, अदुक्खमसुहं पि वेयणं वेदेति । कठिन शब्दार्थ-जोणी-योनि-जीवों का उत्पत्ति स्थान, अदुक्ख-दुःख नहीं, असुहं सुख नहीं। भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है ? ३ उत्तर-हे गौतन ! योनि तीन प्रकार की कही गई है । यथा-शीत, उष्ण और शीतोष्ण । यहाँ प्रज्ञापना सूत्र का नौवां योनि पद' सम्पूर्ण कहना चाहिये। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? ४ उत्तर-हे गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है । यथा-शीत, उष्ण और शीतोष्ण । इस प्रकार यहां प्रज्ञापना सूत्र का सम्पूर्ण पैतीसवां वेदना पद कहना चाहिये, यावत् हे भगवन् ! क्या नैरयिक जीव दुःख रूप वेदना वेदते हैं, या सुख-रूप वेदना वेइते हैं, या अदुःख-असुख रूप वेदना वेदते हैं ? हे गौतम ! नरयिक जीव, दुःखरूप वेदना भी वेदते हैं, सुखरूप वेदता भी वेदते हैं और अदुःख-असुख रूप वेदना भी वेदते हैं। विवेचन-योनि शब्द 'यु मिश्रणे' धातु से बना है । इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है"युवन्ति अस्यामिति 'योनिः' अर्थात् जिसमें तैजस कार्मण शरीरवाले जीव, औदारिकादि शरीर योग्य पुद्गल स्कन्ध के समुदाय के साथ मिश्रित होते हैं, उसे 'योनि' कहते हैं । अर्थात् जीवों के उत्पत्ति स्थान को योनि कहते हैं । वह योनि प्रत्येक जीवनिकाय के वर्ग, गन्ध, रस, स्पर्श के भेद से अनेक प्रकार को है। यथा-पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वायुकाय प्रत्येक की सात-सात लाख, प्रत्येक वनस्पति की दस लाख, साधारण वनस्पति (अनन्त) काय की चौदह लाख, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय प्रत्येक की दो-दो लाख, देव, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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