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भगवती सूत्र-श. १०७. २ योनि और वेदना
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है, या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? .
२ उत्तर-हे गौतम ! अकषाय भाव में स्थित संवत अनगार को उपर्युक्त रूपों का अवलोकन करते हुए ऐपिथिको क्रिया लगती है, किन्तु साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
उत्तर-हे गौतम ! जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न (अनुदित-उदयावस्था में नहीं रहे हुए)हो गये हों, उसको ऐपिथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी नहीं लगती। यहां सातवें शतक के प्रथम उद्देशक में वणित 'वह संवृत अनगार सूत्र के अनुसार आचरण करता है'-तक सब वर्णन कहना चाहिये।
विवेचन-यहाँ संवृत अनगार को क्रिया लगने के विषय में बतलाया गया है । जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न हो जाते हैं, (उदय में नहीं रहते) उसके एक ऐर्यापथिकी क्रिया होती है। एवं सूत्रानुसार प्रवृत्ति करने वाले जीव के एक ऐपिथिकी क्रिया होती है । जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न नहीं हुए हैं (उदय में हैं) यावत् जो मूत्र विपरीत प्रवृत्ति करता है, उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है ।
योनि और वेदना
३ प्रश्न-कहविहा णं भंते ! जोणी पण्णता ?
३ उत्तर-गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-सीया, उसिणा, सीओसिणा; एवं जोणीपयं गिरवसेसं भाणियव्वं ।
४ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता ?
४ उत्तर-गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता, तं जहा-सीया, उसिणा, सीओसिणा । एवं वेयणापयं गिरवसेसं भाणियव्वं, जाव
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