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भगवती सूत्र-श. १० . १ दिशाओं का स्वरूप
इन दिशाओं को क्रमशः आग्नेयी, नमंती, वाहणी. वायव्या, मौम्या और ऐशानी कहते है । प्रकाग युक्त होने से ऊर्ध्व दिशा को 'विमला' कहते हैं और अन्धकार युक्त होने से अधोदिगा को तमा' कहते हैं।
पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, ये चारों दिशाएं गाड़ी के उद्धि (ओढण) के आकार हैं । अर्थात् मेरु पर्वत के मध्य भाग में आठ रुवक प्रदेश है। चार ऊपर की ओर और चार नीचे की ओर गोस्त ताकार हैं । यहाँ से दस दिशाएँ निकलो हैं । पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ये चार दिशाएँ मूल में दो दो प्रदेशी निकली हैं और आगे दो-दो प्रदेश की वृद्धि होती हुई लोकान्त तक एवं अलोक में चलीगई हैं । लोक में असंख्यात प्रदेश वृद्धि हुई है और अलोक में अनन्त प्रदेश वद्धि हई है। अत: इनका आकार गाडी के ओढण के समान है । आग्नेयी, नैर्ऋती, वायव्य और ईशान, ये चार विदिशाएँ एक-एक प्रदेशी निकली हैं
और लोकान्त तक एक प्रदेशो ही चली गई हैं। इनका आकार मुक्तावली (मातियों को लड़ी) के ममान है । ऊर्ध्व दिशा और अधो दिशा चार-चार प्रदेशी निकली हैं और लोकांत तक एवं अलोक में चलो गई है। ये रुवकाकार हैं । पूर्व दिशा समस्त धर्मास्तिकाय रूप नहीं है, किन्तु धर्मास्तिकाय का एक देश है और असख्यात प्रदेश रूप है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय का एक देश और असंख्यात प्रदेश रूप है और अद्धा समय रूप है । इस प्रकार अरूपी अजीव रूप सात प्रकार की पूर्व दिशा है।
आग्नेयी विदिया जीव रूप नहीं है । क्योंकि सभी विदिशाओं की चौड़ाई एक-एक प्रदेश रूप हैं, क्योंकि वे एक प्रदेशी ही निकली हैं और अन्त तक एक प्रदेशी ही रही हैं। एक प्रदेश में जीव का समावेश नहीं हो सकता । क्योंकि जीव की अवगाहना असंख्य प्रदेशात्मक है । पूर्व दिशा के समान शेष तीनों दिशाओं का कथन जानना चाहिये और आग्नेयी विदिशा के समान शेष तीनों विदिशाओं का कथन जानना चाहिये।
समय का व्यवहार गतिमान् सूर्य के प्रकाश पर अवलम्बित है । वह गतिमान् सूर्य का प्रकाश तमा (अधो) दिशा में नहीं है । इसलिये वहाँ अद्धा समय (काल) नहीं है । यद्यपि विमला (ऊर्ध्व) दिशा के विषय में भी गतिमान् सूर्य का प्रकाश न होने से अद्धा समय का व्यवहार संभव नहीं है, तथापि मेरु पर्वत के स्फटिक काण्ड में गतिमान् सूर्य के प्रकाश का संक्रम होता है, इसलिये वहां समय का व्यवहार हो सकता हैं।
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