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भगवती सूत्र-श. १० उ.१ दिशाओं का स्वरूप
कहना चाहिये । जीव के जो प्रदेश हैं वे नियम से एकेन्द्रियों के प्रदेश है अथवा एकेंद्रियों के बहुत प्रदेश और एक बेइन्द्रिय के बहुत प्रदेश । अथवा एकेंद्रियों के बहुत प्रदेश और वहुत बेइन्द्रियों के बहुत प्रदेश । इस प्रकार सभी जगह प्रथम भंग के सिवाय दो दो भंग जानना चाहिये । इस प्रकार यावत् अनिन्द्रिय तक जानना चाहिये । अजीवों के दो भेद हैं । यथा-रूपी अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीव के चार भेद हैं। स्कन्ध, स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु पुद्गल हैं । अरूपी अजीव के सात भेद हैं । यथा-१ धर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु धर्मास्तिकाय का देश २ धर्मास्तिकाय के प्रदेश ३ अधर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु अधर्मास्तिकाय का देश ४ अधर्नास्तिकाय के प्रदेश ५ आकाशास्तिकाय नहीं, किन्तु आकाशास्तिकाय का देश, ६ आकाशास्तिकाय के प्रदेश, और ७ अद्धा समय। विदिशाओं में जीव नहीं हैं, इसलिये सर्वत्र देश और प्रदेश विषयक भंग होते हैं।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! याम्या (दक्षिण) दिशा क्या जीव रूप है, इत्यादि प्रश्न ।
८ उत्तर-हे गौतम ! ऐन्द्री दिशा के समान सभी कथन जानना चाहिये। आग्नेयी विदिशा का कयन नैऋतीविदिशा के समान है। वारुणी (पश्चिन) दिशा का कथन ऐन्द्री दिशा के समान है। वायव्यविदिशा का कथन आग्नेयो विदिशा के समान है । सौम्या (उत्तर) दिशा का कथन ऐन्द्री दिशा के समान है और ऐशानी विदिशा का कथन आग्नेयी विदिशा के समान है। विमला (ऊर्व) दिशा में जीवों का कथन आग्नेयी दिशा के समान है और अजीवों का कथन ऐन्द्री दिशा में कथित अजीवों की तरह है । इसी प्रकार तमा (अधो) दिशा का कयन भी जानना चाहिये । परन्तु इतनी विशेषता है कि तमा दिशा में अरूपी अजीवों के छह भेद हैं। क्योंकि उसमें अद्धासमय (काल) नहीं है।
. विवेचन-पूर्व दिशा जीव रूप है । क्योंकि उसमें एकेन्द्रिय आदि जीव रहे हुए हैं। उसमें पुद्गलास्तिकाय आदि अजीव पदार्थ रहे हुए हैं, इसलिये वह अजीव रूप भी है।
दिशाओं के दस नाम कहे गये हैं। पूर्व दिशा का स्वामी इन्द्र है । इसलिये उसे 'ऐन्द्री' कहते हैं । इसी प्रकार अग्नि, यम, नैर्ऋती, वरुण, वायु, सोम और ईशान देव स्वामी होने से
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