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________________ भगवती सूत्र - शं. ९ उ. ३४ ऋषि घातक, अनंत जीवों का घातक कठिन शब्दार्थ - इस ऋषि, पुट्ठे - स्पर्श करता है (बन्धता है), णिक्खेवो- उपसंहार । भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! कोई पुरुष, ऋषि को मारता हुआ ऋषि को ही मारता है, या नोॠषि ( ऋषि के सिवाय दूसरे जीवों) को भी मारता है ? १७७५ ४ उत्तर - हे गौतम! वह ऋषि को भी मारता है और नोॠषि को भी । प्रश्न - हे भगवन् इसका क्या कारण है ? उत्तर - हे गौतम! उस मारने वाले पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि 'मैं एक ऋषि को मारता हूँ, परन्तु वह एक ऋषि को मारता हुआ अनन्त जीवों को मारता है । इस कारण पूर्वोक्त रूप से कहा गया है । ५ प्रश्न - हे भगवन् ! पुरुष को मारता हुआ कोई व्यक्ति, क्या पुरुष वर से स्पृष्ट होता है, या नोपुरुषवैर से ? ५ उत्तर - हे गौतम ! वह नियम से ( निश्चित रूप से) पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है । ( १ ) अथवा पुरुष वैर से और नोपुरुष वैर से स्पृष्ट होता है । (२) अथवा पुरुषवैर से और नोपुरुष-वैरों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार अश्व के विषय में यावत् चित्रल के विषय में भी जानना चाहिये । यावत् अथवा चित्रल - वर से और नोॠषि-वैर से स्पृष्ट होता है । ६ प्रश्न - हे भगवन् ! ऋषि को मारता हुआ कोई पुरुष, क्या ऋषि-वैर से स्पष्ट होता है, या नोॠषि-वैर से स्पृष्ट होता है ? ६ उत्तर - हे गौतम ! वह नियम से ऋषि-वैर से और नोॠषि-वैरों से स्पष्ट होता है । विवेचन-कोई पुरुष किसी पुरुष को मारता है, तो कभी केवल वह उसी का वध करता है, कभी उसके साथ दूसरे एक जीव का भी वध करता है और कभी उसके साथ अन्य अनेक जीवों का वध भी करता है । इस प्रकार तीन भंग बनते हैं । Jain Education International ऋषि की घात करता हुआ पुरुष, अन्य अनन्त जीवों की घात करता है । यह एक ही भंग बनता है । क्योंकि ऋषि की घात करने में अनन्त जीवों की घात होती है । इसका For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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