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भगवती सूत्र-श. ५ उ.८ पृरुप और नोपुरूप का घातक
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१ उत्तर-हे गौतम ! वह पुरुष को भी घात करता है और नोपुरुष की भी।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
उत्तर-हे गौतम ! घात करने वाले उस पुरुष के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि 'मैं एक पुरुष को मारता हूँ,' परन्तु वह एक पुरुष को मारता हुआ दूसरे अनेक जीवों को भी मारता है। इसलिये हे गौतम ! यह कहा गया है कि-'वह पुरुष को भी मारता है और नोपुरुष को भी मारता है।'
२ प्रश्न-हे भगवन् ! अश्व को मारता हुआ कोई पुरुष, अश्व को मारता है, या नोअश्व को ?
२ उत्तर-हे गौतम ! वह अश्व को भी मारता है और नोअश्व (अश्व के सिवाय दूसरे जीवों) को भी मारता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? - उत्तर-हे गौतम ! इसका उत्तर पूर्ववत् जानना चाहिये । इसी प्रकार हाथी, सिंह, व्याघ्र यावत् चित्रल तक जानना चाहिए । इन सभी के लिये एक समान पाठ है।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई पुरुष किसी एक त्रस जीव को मारता हुआ वह उस त्रस जीव ही मारता है, या उसके सिवाय दूसरे त्रस जीवों को भी मारता है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! वह उस त्रस जीव को भी मारता है और उसके सिवाय दूसरे त्रस जीवों को भी मारता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
उत्तर-हे गौतम ! उस त्रस जीव को मारने वाले पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि-'मैं इस त्रस जीव को मारता हूँ,' परन्तु वह उस स जीव को मारता हुआ उसके सिवाय दूसरे अनेक त्रस्त जीवों को भी मारता है, इसलिये हे गौतम ! पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिये । इन सभी का एक समान पाठ है।
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