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भगवती सूत्र--- श. ५ 3. ३३ जमाली का भविष्य
प्रशांत जीवन वाला और विविक्तजीवी (पवित्र और एकांत जीवन वाला) था?
४३ उत्तर-हाँ, गौतम ! जनाली अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विविक्तजीवी था।
४४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि जमाली अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विविक्तजीवी था, तो काल के समय काल करके वह लान्तक देवलोक में तेरह सागपरोम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवपने क्यों उत्पन्न हुआ ?
४४ उत्तर-हे गौतम ! वह जमाली अनगार, आचार्य और उपाध्याय का प्रत्यनीक (द्वेषी) था । आचार्य और उपाध्याय का अपयश करने वाला और अवर्णवाद बोलने वाला था, यावत् वह मिथ्याभिनिवेश द्वारा अपने आपको, दूसरों को और उभय को भ्रान्त और दुर्बोध करता था यावत् बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन कर, अर्धमासिक संलेखना द्वारा शरीर को कृश कर और तीस भक्त अनशन का छेदन कर, उस पापस्थानक की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना काल के समय काल कर, लान्टक देवलोक में तेरह सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देव रूप से उत्पन्न हआ।
४५ प्रश्न-हे भगवन् ! वह जमाली देव, देवपन और देवलोक अपनी आयु क्षय होने परं यावत् कहाँ उत्पन्न होगा? .
४५ उत्तर-हे गौतम ! तिर्यंच योनिक, मनुष्य और देव के चार पांच भव करके और इतना संसार परिभ्रमण करके सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा। ___हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-यद्यपि जमाली अनगार अरसाहारी, विरसाहारी आदि था, किन्तु आचार्य उपाध्याय का प्रत्यनीक होने से तथा असद्भावना और मिथ्यात्व के अभिनिवेश के कारण झूठी प्ररूपणा द्वारा स्वयं तथा दूसरों को भ्रान्त करने से एवं उस पाप स्थान की आलोचना ।
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