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________________ १७६८ भगवती सूत्र-श.६ उ. ३३ जमाली का भविप्य किल्विषिक देव अनादि, अनन्त और दीर्घ मार्ग वाले चार गति रूप संसार कान्सार (संसार रूपी अटवी) में परिभ्रमण करते हैं। विवेचन-देवों में जो देव पाप के कारण चाण्डाल के समान होते हैं, उन्हें 'किल्विषिक' कहते हैं । अर्थात् जिस प्रकार यहाँ चाण्डाल अपमानित होता है. उसी प्रकार जो देव, देवसभा में अपमानित होते हैं, उन्हें 'किल्बिषिक' कहते हैं । वे जब सभा में उठकर कुछ बोलते हैं, तो दो-चार महद्धिक देव खड़े होकर कहते हैं- "बस, मत बोलो, चुप रहो, बैठ जाओ," इत्यादि शब्द कहकर उनका अपमान करते हैं। कोई उनका आदर-सत्कार नहीं करता। - प्रश्न ४२ में यह कहा गया है कि किल्विषी मरकर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में 'नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के चार पांच भव ग्रहण करके मोक्ष जाने का कहा गया, यह सामान्य कथन है । अन्यथा देव और नारक मरकर तुरन्त देव और नारक नहीं होते । वे वहाँ से मनुष्य या तिर्यञ्च में उत्पन्न होते हैं । इसके पश्चात् नारक या देवों में उत्पन्न हो सकते हैं । जमाली का भविष्य - ४३ प्रश्न-जमाली णं भंते ! अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लहाहारे तुच्छाहारे अरसजीवी विरसजीवी जाव तुच्छजीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी ? ४३ उत्तर-हंता, गोयमा ! जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी । ____ ४४ प्रश्न-जइ णं भंते ! जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी, कम्हा णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमटिइएसु देवकिदिवसिएसु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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