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________________ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ कित्यषिक देवों का स्वरूप १७६७ किल्विषिक देवपने उत्पन्न होते हैं ? ४१ उत्तर-हे गौतम ! जो जीव आचार्य, उपाध्याय, कुल, गण और संघ के प्रत्यनीक (द्वेषी) होते हैं, आचार्य और उपाध्याय के अयशः करनेवाले, अवर्णवाद बोलने वाले और अकीति करने वाले होते हैं। बहुत असत्य अर्थ को प्रकट करने से तथा मिथ्या-कदाग्रह से अपनी आत्मा को, दूसरों को और उभय को भ्रान्त और दुर्बोध करने वाले जीव, बहुत वर्षों तक श्रम ग-पर्याय का पालन कर, अकार्यस्थान (पापस्थान) की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना, काल के समय काल करके किन्हीं किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवपने उत्पन्न होते हैं। वे इस प्रकार हैं-तीन पल्योपम की स्थिति वाले, तीन सागर की स्थिति वाले और तेरह सागर की स्थिति वाले। - ४२ प्रश्न-देवकिदिवसिया णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति ? ४२ उत्तर-गोयमा ! जाव चत्तारि पंच णेरड्य-तिरिक्खजोणिय मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसार अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिझंति, बुझंति, जाव अंतं करेंति; अत्थेगइया अणाईयं अणवदग्गं दीहमळू चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटुंति । भावार्थ-४२ प्रश्न-हे भगवन् ! वे किल्विषिक देव, आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर उस देवलोक से चवकर कहां जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? ____४२ उत्तर-हे गौतम ! कुछ किल्विषिक देव नैरयिक, तियंच, मनुष्य और देव के चार, पांच भव करके और इतना संप्तार परिभ्रमण करके सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। और कितने ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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