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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ३३ किल्विषिक देवों का स्वरूप
सनत्कुमार और माहेंद्र देवलोक के नीचे तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं।
४० प्रश्न-हे भगवन् ! तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ?
४० उत्तर-हे गौतन ! ब्रह्म देवलोक के ऊपर और लान्तक देवलोक के नीचे तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं।
४१ प्रश्न-देवकिदिवसिया णं भंते ! केसु कम्मादाणेसु ‘देवकिबिंसियत्ताए उववतारो भवंति ? ... ४१ उत्तर-गोयमा ! जे इमे जीवा आयरियपडिणीया, उवज्झायपडिणीया, कुलपडिणीया, गणपडिणीया, संघपडिणीयाः आयरियउवज्झायाण अयसकरा, अवण्णकरा, अकित्तिकरा, वहूहिं असभाबुभावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा, वुप्पाएमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणिता, तस्स ट्ठाणस्स अणालोइयपडिपकंता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवकिदिवसिएसु देवकिदिवसियत्ताए उववत्तारो भवंति; तं जहा-तिपलिओवमट्टिइएसु वा, तिसागरोवमट्टिइएसु वा, तेरससागरोवमट्ठिइएसु वा।
कठिन शब्दार्थ-कम्मादाणेसु-कर्म के कारण, उववतारो-उत्पन्न होते, पडिणियाद्वेपी, अवष्णकरा-निन्दा करने वाले।
भावार्थ-४१ प्रश्न-हे भगवन् ! किल्विषिक देव किस कर्म के निमित्त से
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