SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६६ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ३३ किल्विषिक देवों का स्वरूप सनत्कुमार और माहेंद्र देवलोक के नीचे तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं। ४० प्रश्न-हे भगवन् ! तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? ४० उत्तर-हे गौतन ! ब्रह्म देवलोक के ऊपर और लान्तक देवलोक के नीचे तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं। ४१ प्रश्न-देवकिदिवसिया णं भंते ! केसु कम्मादाणेसु ‘देवकिबिंसियत्ताए उववतारो भवंति ? ... ४१ उत्तर-गोयमा ! जे इमे जीवा आयरियपडिणीया, उवज्झायपडिणीया, कुलपडिणीया, गणपडिणीया, संघपडिणीयाः आयरियउवज्झायाण अयसकरा, अवण्णकरा, अकित्तिकरा, वहूहिं असभाबुभावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा, वुप्पाएमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणिता, तस्स ट्ठाणस्स अणालोइयपडिपकंता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवकिदिवसिएसु देवकिदिवसियत्ताए उववत्तारो भवंति; तं जहा-तिपलिओवमट्टिइएसु वा, तिसागरोवमट्टिइएसु वा, तेरससागरोवमट्ठिइएसु वा। कठिन शब्दार्थ-कम्मादाणेसु-कर्म के कारण, उववतारो-उत्पन्न होते, पडिणियाद्वेपी, अवष्णकरा-निन्दा करने वाले। भावार्थ-४१ प्रश्न-हे भगवन् ! किल्विषिक देव किस कर्म के निमित्त से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy