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भगवती सूत्र-गः ५. उ. ३ सर्वज्ञता का झूठा दावा
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भावार्थ-३५-इसके बाद जमाली अनगार इस प्रकार कहता यावत् प्ररूपणा करता हुआ और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की बात पर श्रद्धा, प्रतीति, रुचि नहीं करता हुआ, अपितु अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि करता हुआ, दूसरी बार भगवान् के पास से निकल गया। जमाली ने बहुत से असद्भूत भावों को प्रकट करके तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश से अपनी आत्मा को, पर को और उभय को भ्रान्त तथा मिथ्या ज्ञान वाले करता हुआ बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन किया। फिर अर्द्ध मात को संलेख ना द्वारा अपने शरीर को कृश करके और अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन करके, पूर्वोक्त पाप की आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना ही काल के समय में काल करके लान्तक देव. लोक में, तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में, किल्विषिक देव रूप से उत्पन्न हुआ। ...
३६ प्रश्न-तएणं भगवं गोयमे जमालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव ममणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से जमाली णामं अणगारे, से णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववण्णे ? ___ ३६ उत्तर-गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयामी-एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली णामं अणगारे से णं तया मम एवं आइक्खमाणस्स ४ एयं अटुं णो सद्दहइ ३ एयं अटुं असदहमाणे ३ दोच्चं पि ममं अंतियाओ
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