________________
१७६२
भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ सर्वज्ञता का झूठा दावा
उत्सर्पिणी काल होकर अवसर्पिणी काल होता है।"
"हे जमाली ! जीव शाश्वत है, क्योंकि ‘जीव कदापि नहीं था, नहीं है और नहीं रहेगा'-ऐसी बात नहीं है, किन्तु 'जीव था, है और रहेगा।' यावत् जीव नित्य है । हे जमाली ! जीव अशाश्वत भी है । क्योंकि वह नैरयिक होकर तिथंच योनिक हो जाता है, तिर्यंच योनिक होकर मनुष्य हो जाता है और मनुष्य होकर देव हो जाता है ।
३५-तएणं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयं अटुं णो सद्दहइ, णो पत्तियई, णो रोएड; एयमटुं असदहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोए. माणे दोच्चं पि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमइ, दोच्चं पि आयाए अवक्कमित्ता बहहिं असम्भावुभा. वणाहिँ मिच्छताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहे. माणे, वुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झुसेइ, झूसित्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ, तीसं० छेदित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमटिडएसु देवकिन्विसिएसु देवेसु देवकिदिवसियत्ताए उववण्णे ।
कठिन शब्दार्थ-आइक्खमाणस्स-कही गई वात का, असन्मावग्भावणाहि-असत्य भाव प्रकट करने से, मिच्छत्ताभिणिवेसेहि-मिथ्यात्वाभिनिवेश (असत्य के दृढ़ आग्रह से), बुगाहेमाणे-भ्रान्त करता हुआ, वुप्पाएमाणे-मिथ्याज्ञान वाला करता हुआ, अणालोइयबालोचना नहीं किया हुआ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org