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-श. ९ उ. ३३ सर्वज्ञता.
खलु जमाली ! केवलिस्म णाणे वा दंसणे वश मेलसि वा थंभसि वा थूभसि वा आवरिजइ वा णिवारिज्जड वा. जइ णं तुम जमाली ! उप्पण्णगाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवकमणेणं अवकंते तो णं इमाइं दो वागरणाई वागरेहि-मासए लोए जमाली ! असासए लोए जमाली ! सासए जीव जमाली ! अमासए जीवे जमाली ! तएणं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए जाव कलुससमावण्णे जाए या वि होत्था, णो संचायइ भगवओ गोयमस्स किंचि वि पमोक्खं आइविखत्तए, तुसिणीए संचिट्टइ।
कठिन शब्दार्थ-सेलसि-पर्वत से, आवरिज्जइ-ढकता है. णिवारिज्जइ-निवारित होता है, कलुससमावण्णे-कलुपित भाव को प्राप्त हुआ।
भावार्थ-३३-जमाली की बात सुनकर भगवान् गौतम स्वामी ने जमाली अनगार से इस प्रकार कहा-“हे जमाली ! केवली का ज्ञान दर्शन पर्वत, स्तम्भ और सूप आदि से आवृत और निवारित नहीं होता । हे जमाली ! यदि तू उत्पन्न केवलज्ञान दर्शन का धारण करने वाला अरिहन्त, जिन, केवली होकर केवली-विहार से विचरण करता हुआ आया है, तो इन दो प्रश्नों का उत्तर दे(प्रश्न) हे जमाली ! क्या लोक शाश्वत है या अशाश्यत है ? हे जमाली ! क्या जीव शाश्वत है या अशाश्वत है ?
___ गौतम स्वामी के इन प्रश्नों को सुनकर जनाली शंकित और कांक्षित हुआ यावत् कलुषित परिणाम वाला हुआ। वह गौतम स्वामी के प्रश्नों का उत्तर देने में समर्थ नहीं हुआ। अंतः मौन धारण कर चुपचाप खड़ा रहा।
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