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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३३ नर्वज्ञता का झूठा दावा
है।" इस प्रकार विचार कर जमाली अनगार ने श्रमण-निर्ग्रन्थों को बुलाकर इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि 'चलमान चलित कहलाता है' इत्यादि (पूर्ववत्), यावत् निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण नहीं, किन्तु अनिर्जीर्ण है।" जमाली अनगार की इस बात पर कितने ही श्रमण-निग्रंथों ने श्रद्धा, प्रतीति और रुचि की तथा कितने ही श्रमण-निर्ग्रन्थों ने श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की। जिन श्रमण-निर्ग्रन्थों ने जमाली अनगार की उपरोक्त बात पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि की, वे जमाली अनगार के पास रहे और जिन्होंने उनकी बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की, वे जमाली अनगार के पास से-कोष्ठक उद्यान से निकल कर अनुक्रम से विचरते हुए एवं ग्रामानुग्राम विहार करते हुए, चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र उद्यान में, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास लौट आये और भगवान को तीन बार प्रदक्षिणा करके एवं वन्दना-नमस्कार करके उनके आश्रय में विचरने लगे।
- विवेचन-'चलमान चलित यावत् निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण'-यह भगवान् का सिद्धान्त है। इसका सयुक्तिक विवेचन भगवती सूत्र के प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक के प्रारम्भ में कर दिया गया है । जमाली ने इस सिद्धान्त से विपरीत प्ररूपणा की। उनके पास रहने वाले कितने ही श्रमण-निर्ग्रन्थों ने इस सिद्धान्त पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि की और कितने ही श्रमण निर्ग्रन्यों ने इस सिद्धान्त पर श्रद्धा, प्रतीति, रुचि नहीं की। वे जमाली अनगार के पास से निकल कर श्रमग भावान् महावीर स्वामी के पास चले आये ।
सर्वज्ञता का झूठा दावा
३२-तएणं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ. ताओ रोगायंकाओ विष्पमुक्के, हट्टे जाए, अरोए बलियसरीरे, सावस्थीए णयरीए कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिस्खमइ, पडिणिक्खमित्ता
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