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भगवती सूत्र-श... उ. ३३ जमली के मिथ्यात्व का उदय
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आइक्वमाणस्म जाव परूवमाणस्म अस्थगइया समणा णिग्गंथा एयमढे संदहति पत्तियति रोयंति, अत्थेगडया समणा णिग्गंथा एयमलृ णो सदहंति, णो पत्तियंति, णो रोयंति । तत्थ णं जे ते समणा गिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्म एयमढें मदहति, पत्तियंति, रोयंति ते णं जमालिं चेव अणगार उपसंपजित्ता णं विहरंति; तत्थ णं जे ते समणा णिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयं अटुं
णो सदहंति, णो पत्तियंति, णो रोयंति ते णं जमालिस्स अणगा. रस्म अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता पुवाणुपुल्लिं चरमाणा गामाणुगामं दृइज्जमाणा जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता - णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं उपसंपजिता णं विहरति ।
कठिन शब्दार्थ-अज थिए-अध्यवसाय, चलमाणे चलिए-चलता हो वह चला, पच्चक्खमेव-प्रत्यक्ष ही, संपेहेइ-विचार करता है, उवसंपज्जित्ताणं-आश्रय करके।
भावार्थ-श्रमणों को यह बात सुनने पर जमाली अनगार को इस प्रकार विचार हुआ-"श्रमण भगवान महावीर स्वानी इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपगा करते हैं कि 'चलमान चलित है, उदीर्यमाग उदीरित है यावत् निर्जीयमाण निर्जीर्ण है, परन्तु यह बात मिथ्या है । क्योंकि यह बात प्रत्यक्ष है कि जब तक बिछौना बिछाया जाता हो, तब तक 'बिछाया हुआ नहीं है, इस कारण चलमान चलित नहीं, किन्तु अचलित है, यावत् निर्जीय नाण निर्जीर्ण नहीं, परन्तु अनिर्जीर्ण
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