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भगवती सूत्र - श. ९. ३३ जमाली के मिथ्यात्व का उदय
प्रमाणातिक्रान्त ( प्रमाण से कम या अधिक ।) और ठण्डे पान-भोजन से शरीर में महारोग हो गया । वह रोग, अत्यन्त दाह करने वाला, विपुल, प्रगाढ़, कर्कश, कटुक, चण्ड (भयङ्कर), दुःखरूप, कष्ट साध्य, तीव्र और असह्य था । उसका शरीर पित्तज्वर से व्याप्त होने से दाह युक्त था । वेदना से पीड़ित बने जमालो अनगार ने श्रमण निर्ग्रन्थों से कहा - "हे देवानुप्रियो ! मेरे सोने के लिये संस्तारक ( बिछौना) बिछाओ।" श्रमण-निर्ग्रन्थों ने जमालो अनगार की बात, विनय पूर्वक स्वीकार की और बिछौना बिछाने लगे । जमाली अनगार वेदना से अत्यन्त व्याकुल थे, इसलिये उन्होंने फिर श्रमण निर्ग्रन्थों से प्रियो ! क्या बिछौना बिछा दिया, या बिछा रहे हो ?” तब कहा - "हे देवानुप्रिय ! बिछौना अभी बिछा नहीं है, बिछा रहे हैं ।"
पूछा - "हे देवानु
श्रमण रिन्थों ने
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तरणं तस्स जमालिस्म अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था - जं णं समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खर, जाव एवं परूवेड़ एवं खलु चलमाणे चलिए, उदीरिजमाणे उदीरिए, जाव णिजरिमाणे णिजिणे; तं णं मिच्छा; इमं च णं पञ्चखमेव दीसइ सेना संथारए कजमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए; जम्हा णं सेज्जासंथारए कज्रमाणे अकडे, संथरिजमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणे वि अचलिए, जाव णिजरिजमाणे वि अणिजिणे, एवं संपे, संहिता समणे णिग्गंथे सहावेइ, सम० सहा वित्ता एवं वयासी - जं णं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खह जात्र परूवेइ - एवं खलु चलमाणे चलिए; तं चैव सव्वं जाव णिज्ज - रिज्जेमाणे अणिजिष्णे । तपणं तस्स जमालिस्स अणगारस्स एवं
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