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भगवती सूत्र-श. ६ उ.:: जमाली के मिथ्यात्व का उदय
चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव सावत्थी णयरी, जेणेव कोट्ठए चेहए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हइ, अ० ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे जाव सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चपा णयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ. उवागच्छिता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हइ, अ० ओगिण्हित्ता संजमेणं तवमा अप्पाणं भावे. माणे विहरइ । . .
कठिन शब्दार्थ- महापडिरूवं - यथा प्रतिरूप-मुनियों के योग्य ।
भावार्थ-३०-उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थीवर्णन । वहाँ कोष्ठक नामक उद्यान था-वर्णन यावत् वनखण्ड तक । उस काल उस समय में चम्पा नाम को नगरी थी-वर्णन। पूर्णभद्र उद्यान था-वर्णन यावत् उसमें पृथ्वीशिलापट्ट था। एक बार वह जमाली अनगार पांच सौ साधुओं के साथ अनुक्रम से विहार करते हुए और ग्रामानुग्राम विचरते हुए श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्ठक उद्यान में आये और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। इधर भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरते हुए यावत् सुखपूर्वक विहार करते हुए चम्पा नगरी के पूर्णभद्र उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके तप संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे।
जमाली के मिथ्यात्व का उदय ३१-तएणं तस्स जमालिस्स अणगारस्स तेहिं अरसेहि य
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