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भगवती सूत्र-स. ९ उ. जमाली का पृथक् विहार
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तएणं समणे भगवं महावीरे जमालिस्म अणगारम्म दोच्चं पि तचं पि एयमढें णो आढाइ, जाव तुमिणोए मंचिट्टइ । तएणं मे जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदड़ णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता समणस्म भगवओ महावीरस्म अंतियाओ वहुमालाओ चेइयाओ पडिणिक्वमइ, पडिणिस्खमित्ता पंचहिं अणगारसएहिं सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरइ ।
कठिन शब्दार्थ-जणवयविहारं-जनपद विहार, णो आढाइ-आदर नहीं किया, णो परिजाणइ-अच्छा नहीं जाना, तुसिणीए संचिट्ठइ-मौन रहे, अंतियाओ-पास से ।
भावार्थ-२९-एक दिन जमाली अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार बोले-“हे भगवन् ! आपकी आज्ञा हो, तो में पांच सौ अनगारों के साथ अन्य प्रान्तों में विचरना चाहता हूँ।" भगवान् ने जमाली अनगार की इस मांग का आदर नहीं किया, स्वीकार नहीं किया और मौन रहे । जमाली अनगार ने यही बात दूसरी बार और तीसरी बार कही, परन्तु भगवान् पूर्ववत् मौन रहे । तब जमाली अनगार भगवान् को वन्दना नमस्कार करके उनके पास से एवं बहुशालक उद्यान से निकल कर पाँच सौ साधुओं के साथ अन्य देशों में विचरने लगे।
३० तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी णामं णयरी होत्था, वण्णओ; कोट्ठए चेइए, वण्णओ जाव वणसंडस्स । तेणं कालेणं तेणं समएणं, चंपा णामं णयरी होत्था, वण्णओ । पुण्णभद्दे चेइए, वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तएणं से जमाली अणगारे अण्णया कयाई पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिबुडे पुन्वाणुपुन्धि
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