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________________ भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली का पृथक् विहार अहिज्झित्ता बहूहिं चउत्थ - टुम- जाव मासद्ध-मासखमणेहिं विचितेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरs | १७५२ भावार्थ - २८ - इसके बाद जमाली क्षत्रियकुमार ने स्वयमेव पंचमुष्टिक लोच किया और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में आकर ऋषभदत्त ब्राह्मण की तरह प्रव्रज्या अंगीकार की । इसमें इतनी विशेषता है कि जमाली क्षत्रियकुमार ने पांच सौ पुरुषों के साथ प्रव्रज्या लो। फिर जमाली अनगार ने सामायिकादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत से उपवास, बेला, तेला यावत् अर्द्धमास, मासखमण आदि विचित्र तप द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ विचरने लगा | जमाली का पृथक् विहार २९ - से जमाली अणगारे अण्णया कयाह जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं बंदर णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि गं भंते! तुमेहिं अग्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अणगारमएहिं सर्दिध बहिया जणवयविहारं विहरित्तए । तरणं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स एयमहं णो आढाइ, जो परिजाणइ, तुसिणीए संचिइ । तरणं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी- इच्छामि णं भंते! तुभेहिं अभ जुष्णाए समाणे पंचहि अणगारसहिं सधि जाव विहरितप । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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