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________________ - भगवती सूत्र - श. . उ. २३ जमाली चरित्र जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मा-पियरो समणं भगवं महावीर वंदंति, णममंति, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिमिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। ___ कठिन शब्दार्थ - अहासुहं-यथासुग्व (जैसा मुख हो वैमा करो), मा पडिबंध-प्रतिबंध (रुकावट) मत करो. विणिम्मुयमाणी-विमोचन करती (डालती) हुई, घडियन्वं-प्रयन्न करना चाहिये, जइयत्वं यन्न करना, पडिक्कमियव्वं-पराक्रम करना।। भावार्थ-२७-तत् पश्चात् श्रनग भगवान महावीर स्वामी ने जमालीक्षत्रिय कुमार से इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो।" भगवान् के ऐसा कहने पर जमाली क्षत्रिय कुमार हर्षित और तुष्ट हुआ और भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा कर यावत् वन्दना नमस्कार कर, उत्तर पूर्व (ईशान कोण) में गया । उसने स्वयमेव आभरण, माला और अलङ्कार उतारे । उसको माता ने उन्हें हंस के चिन्हवाले पटशाटक (वस्त्र) में ग्रहण किया। फिर हार और जलधारा के समान आसू गिराती हुई अपने पुत्र से इस प्रकार बोली-“हे पुत्र ! संयम में प्रयत्न करना, संयम में पराक्रम करना । संयम पालन में किंचित् मात्र भी प्रमाद मत करना ।" इस प्रकार कहकर जमाली क्षत्रिय कुमार के माता पिता भगवान् को वन्दना नमस्कार कर के जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापिस चले गये। २८-तएणं से जमाली खत्तियकुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करिता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, एवं जहा उसभदत्तो तहेव पव्वइओ; णवरं पंचहिं पुरिससएहिं सद्धि तहेव जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्झइ, सा० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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