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________________ १७५० भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवामें उपस्थित हुए और भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा करके इस प्रकार बोले - "हे भगवन् ! यह जमालीकुमार हमारा इकलौता, प्रिय और इष्ट पुत्र है। इसका नाम सुनना भी दुर्लभ है, तो दर्शन दुर्लभ हो इसमें तो कहना ही क्या । जिस प्रकार कीचड़ में उत्पन्न होने और पानी में बड़ा होने पर भी कमल, पानी और कीचड़ से निर्लिप्त रहता है, इसी प्रकार जमालीकुमार भी काम से उत्पन्न हुआ और भोगों में बड़ा हुआ, परन्तु वह कामभोग में किचित् भी आसक्त नहीं है। मित्र, ज्ञाति, स्वजन सम्बन्धी और परिजनों में लिप्त नहीं हैं । हे भगवन् ! यह जमालीकुमार संसार के भय से उद्विग्न हुआ है, जन्म-मरण के भय से भयभीत हुआ है । यह आपके पास मुण्डित होकर अनगार धर्म स्वीकार करना चाहता है । अतः हे भगवन् ! हम यह शिष्यरूपी भिक्षा देते हैं । आप इसे स्वीकार करें । २७ - तरणं समणे भगवं महावीरे जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी - अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ! तरणं से जमाली खतियकुमारे समणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ते समाणे हटु-तुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसि - भागं अववकमड़, अवक्कमित्ता सयमेव आभरण-मल्ला-लंकारं ओमुयइ । तरणं सा जमालिस खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणं पडसाडणं आभरण-मल्ला-लंकारं पडिच्छह, आ० २ पडि च्छित्ता हार वारि जाव विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी - घडियव्वं जाया ! जड़यव्वं जाया ! परिक्कमियव्वं जाया ! अस्सि च णं अट्ठे, णो पमाएयव्वं ति कटु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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