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भगवती मूत्र-दा. ९. उ. ३३ जमाली चरित्र
पासित्ता पुरिसमहस्सवाहिणिं सीयं ठवेड, पुरिससहस्सवाहिणिओ सियाओ पचोरुहइ । तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव ममणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! जमाली खत्तियकुमारे अम्हं एगे पुत्ते इटे कंते जाव किमंग ! पुण पासणयाए, से जहा णामए उप्पले इ वा, परमे इ वा, जाव सहम्मपत्ते इ वा पंके जाए जले संवुड्ढे णोऽवलिप्पड़ पंकरएणं, णोऽवलिप्पड़ जलरएणं, एवामेव जमाली वि खत्तियकुमारे कामेहिं जाए, भोगेहिं संवुड्ढे णो विलिप्पइ कामरएणं णो विलिप्पड़ भोगरएणं णो विलिप्पड़ मित्त-गाइ-णियगमयणसंबंधिपरिजणेणं । एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभयुब्बिग्गे भीए जम्मण-मरणेणं; देवाणुप्पियाणं अतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए; तं एयं णं देवाणुप्पियाणं अम्हे सीसभिक्ख दलयामो, पडिच्छेनु णं देवाणुप्पिया ! सीसभिकरवं ।
___ कठिन शब्दार्थ-गोवलिप्पइ-लिप्त नहीं होता, पंकरएणं-पंक की रज से, संसारभयुन्विग्गे-मंमार के भय से उद्विग्न हुआ, पडिच्छंतु-ग्रहण करें।
भावार्थ-औपपातिक सूत्र में वर्णित कोणिक के प्रसंगानुसार जमालीकुमार, हजारों पुरुषों से देखाजाता हुआ ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नगर के बाहर बहुशाल उद्यान में आया और तीर्थङ्कर भगवान् के छत्र आदि अतिशयों को देखते ही सहस्रपुरुषवाहिनी से नीचे उतरा। फिर जमालीकुमार को आगे करके उसके माता-पिता,
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