________________
भगवती मूत्र-ग. ९ उ. ?: जमाली चरित्र
१७४७
पुरुष चले । उनके पीछे एक सौ आठ हाथी, एक सौ आठ घोड़े और एक सौ आठ रथ चले। उनके बाद लकड़ी, तलवार और भाला लिये हुए पदाति पुरुष चले। उनके पीछे बहुत-से युवराज, धनिक, तलवर, यावत् सार्थवाह आदि चले। इस प्रकार क्षत्रियकुण्ड ग्राम नगर के बीच में चलते हुए माहग कुंडग्राम नगर के बाहर बहशालक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास जाने लगे।
२६-तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं णयरं मझमझेणं णिग्गच्छमाणस्म सिंघाडग-तिय चउक्क जाव पहेसु बहवे अत्यत्थिया जहा उववाइए, जाव अभिणंदिया य अभित्थुणंता य एवं वयासी-'जय जय गंदा ! धम्मेणं, जय जय गंदा ! तवेणं, जय जय गंदा ! भई ते अभग्गेहिं णाण-दंसणचरित्तमुत्तमेहि, अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जीयं च पालेहि समणधम्म; जियविग्यो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्झे णिहणाहि य राग-दोसमल्ले, तवेणं धिइधणियबद्धकच्छे, मदाहि य अट्ट कम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं मुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च धीर ! तेलोक्करंगमञ्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं च णाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिटेणं सिद्धिमग्गेणं अकुडिलेणं, हंता परीमहचमू, अभिभविय गामकंटकोवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धमत्यु' त्ति कटु अभिणंदंति य अभिथुणंति य ।
कठिन शब्दार्थ-बहवे अत्यत्यि-बहुत से धन के अर्थी, अभित्थुणंता-स्तुति करते हुए, अमगहि-अखंडित, अजियाइं जिणाहि-नहीं जीते को जीतो, जियविग्यो-विघ्नों को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org