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भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
तर से जमाली खत्तियकुमारे अन्भुग्गयभिंगारे, परिग्गहियता लियंटे, ऊसवियसे यछत्ते, पवीइयसेयचामरबालवीयणीए, सव्विड्ढीए जाव णाइयरवेणं तयाणंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा जाव पुत्थयग्गाहा, जाव वीणग्गाहा, तयाणंतरं च णं असयं गयाणं, अनुसयं तुरयाणं असयं रहाणं; तयानंतरं चणं लउडअसि- कोंतहत्थाणं बहूणं पायताणीणं पुरओ संपट्टियं तयाणंतरं च णं बहवे राईसरतलवरजाव सत्थवाहप्पभिइओ पुरओ संपट्टिया खत्तियकुंडग्गामं णयरं मज्झमज्झेणं जेणेव माहणकुंडग्गामे णयरे, जेणेव बहुसालए चेहए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
कठिन शब्दार्थ - जागा - हाथी, रहा- रथ, रहसंगेल्ली-ग्थ समूह. अब्भुग्गर्याभगारेआगे कलश, परिगहिय तालयंटे - पंखे ग्रहण कर ऊसवियसेयछत्ते - ऊँचा श्वेत छत्र धारण किया हुआ, पवोइय सेयचामरबालवीयणीए – बगल में श्वेत चामर और छोटे पंखे विजते हुए, जाइयरवेणं - नादित शब्द युक्त, पुत्थयगाहा पुस्तकवाले, पहारेत्य प्रारम्भ हुए ।
भावार्थ - २५ - जमालीकुमार के पिता ने स्नानादि किया, यावत् विभूषित होकर हाथी के उत्तम कंधे पर चढ़ा। कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त छत्र धारण करते हुए, दो श्वेत चामरों से बिजाते हुए, घोड़ा, हाथी, रथ और सुभटों से युक्त, चतुरंगिनी सेना सहित और महासुभटों के वृन्द से परिवृत जमालीकुमार के पिता, उसके पीछे चलने लगे । जमालीकुमार के आगे महान् और उत्तम घोड़े, दोनों ओर उत्तम हाथी, पीछे रथ और रथ का समूह चला। इस प्रकार ऋद्धि सहित यावत् वादिन्त्र के शब्दों से युक्त जमालीकुमार चलने लगा । उसके आगे कलश और तालवृन्त लिये हुए पुरुष चले । उसके सिर पर श्वेत छत्र धारण किया हुआ था। दोनों ओर श्वेत चामर और पंखे बिजायें जा रहे थे । इनके पीछे बहुत-से लकडीवाले, भालावाले, पुस्तकवाले यावत् वीणावाले
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