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भगवती मूत्र-स. ९ ३. ३३ जमाली चरित्र
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एक हजार उत्तमं युवक पुरुषों को बुलाओ।" सेवक पुरुषों ने स्वामी के वचन स्वीकार कर शीघ्र ही हजार पुरुषों को बुलाया। वे हजार पुरुष हर्षित और तुष्ट हुए। वे स्नानादि कर के एक समान आभूषण और वस्त्र पहन कर जमाली कुमार के पिता के पास आए और हाथ जोड़ कर बधाये तथा इस प्रकार बोले.. "हे देवानुप्रिय ! हमारे योग्य जो कार्य हो वह कहिये । तब जमालीकुनार के पिता ने उनसे कहा-'हे देवानुप्रियों ! तुम सब जमालीकुमार को शिविका को उठाओ।" उन पुरुषों ने शिविका उठाई। हजार पुरुषों द्वारा उठाई हुई जमालोकुमार की शिविका के सब से आगे ये आठ मंगल अनुक्रम से चले । यथाः(१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नन्द्यावर्त, । ४) वर्धमानक, (५) भद्रासन, .. (६ कलश, (७) मत्स्य और (८) दर्पण । इन आठ मंगलों के पीछे पूर्ण कलश चला, इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् गगनतल को स्पर्श करती हुई वैजयन्ती (ध्वजा) चलो । लोग जय-जयकार का उच्चारण करते हुए अनुक्रम से आगे चले । इसके बाद उग्रकुल, भोगकुल में उत्पन्न पुरुष यावत् महापुरुषों के समह जमालीकुमार के आगे पीछे और आसपास चलने लगे।
.. २५-तएणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव विभूसिए हथिक्खंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं सेयवरचामराहिँ उधुव्बमाणीहिं हयगय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिखुडे, महयाभडचडगर जाव परिक्खित्ते जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ अणुगच्छइ । तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ महं आसा, आसवरा, उभओ पासिं गागा, णागवरा, पिटुओ रहा, रहसंगेल्ली।
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