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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३: जमाली चरित्र
एवं वयासी-तुन्भे णं देवाणुप्पिया ! पहाया कयवलिकम्मा जाव गहियणिज्जोआ जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयं परिवहह । तएणं ते कोडं वियपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स जाव पडिमुणित्ता व्हाया जाव गहिय-णिज्जोआ जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयं परिवहति । तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठ मंगलगा पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठिया; तं जहा-सोस्थिय सिरिवच्छ जाव दप्पणा; तयाणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं जहा उपवाइए, जाव गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया, एवं जहा उववाइए तहेव भाणियबं, जाव आलोयं च करेमाणा जयजयसई च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुटवीए संपट्टिया। तयाणंतरं च णं वहवे उग्गा भोगा जहा उववाइए जाव महापुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता, जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुवीए. संपट्ठिया ।
कठिन शब्दार्थ-एगाभरण-एक सरीखे भूपण, णिज्जोया-योजित किये (नियुक्त किये), सीयं परिवहह-शिविका वहन करो, सोत्थिय-स्वस्तिक, सिरिवच्छ-श्रीवत्स, दप्पणादर्पण, तदाणंतरं-इसके बाद, गगणतलमणुलिहंति-गगन तल को स्पर्श करतो, वग्गुरापरिक्खिता-घेरे से घिरा हुआ।
___भावार्थ-जमालीकुमार के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बला कर इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रियों ! समान त्वचावाले, समान उम्रकाले, समान रूप लावण्य और यौवन गुणों से युक्त तथा एक समान आभूषण और वस्त्र पहने हुए।
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