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भगवती मूत्र-ग..९.उ. ३३ जमाली चरित्र
१७३७
पक्खालेइ, सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालित्ता अग्गेहिं वरहिं गंधेहि, मल्लेहिं अच्चेइ, अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं, मल्लेहिं अच्चित्ता सुधे वत्थे बंधह, सुधे वत्थे बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्खिवइ, पविखवित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार छिण्णमुत्तावलिप्पगासाई सुयवियोगदूसहाई असूई विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी एवं वयासी-एस णं अम्हं जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बहूसु तिहीसु य पव्वणीमु य उस्सवेसु य जण्णेसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सईति कटु ऊसीसगमूले ठवेइ।
कठिन शब्दार्थ-जएणं विजएणं-'जय हो, विजय हो'-इस प्रकार कहकर, वद्धावेइबधाये, संदिसंतु-दिखाओ, कहो, परेणं जत्तेणं-अत्यंत यत्नपूर्वक, णिक्खमणपाओग्गे-निष्क्रमण के योग्य, अग्गकेसे-आगे के बाल, कप्पेहि-काटो, तहत्ताणाए-आज्ञा स्वीकार कर, सुरभिणागंधोदए-मुगन्धित गन्धोदक (सुगन्धित पानी) से, पक्खालेइ-धोये, अट्ठपडलाए-आठ परत वाली, पडसाडएणं-पटसाटक (वस्त्र), पडिच्छइ-ग्रहण किये, अग्गेहि-उत्तम, अच्चेइ-अर्चित किये, पक्खिवइ-प्रक्षिप्त किये (रखे), हार-वारिधार-सिंदुवार-छिण्णमुत्तालिप्पगासाइं- . हार, पानी की धारा, सिन्दुवार के पुष्पों और टूटी हुई मोती की माला के मोती जैसे, सुवियोगदूसहाई-पुत्र वियोग से दुःसह, अंसूई विणिम्मुयमाणी-आँसू डालती हुई तिहिसुतिथि में, पव्वणीसु-पर्व पर, उस्सवेसु-उत्सव पर, जण्णेसु-यज्ञों पर, अपच्छिमे-अपश्चिम, ऊसीसगमले-तकिये के नीचे, ठवेई-रखती है।
भावार्थ-वह नापित जमालीकुमार के पिता के पास आया। उन्हें जय-विजय शब्दों से बधाया और इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय ! मेरे करने योग्य कार्य कहिये।" जमालीकुमार के पिता ने उस नापित से इस प्रकार कहा-"हे देवानुप्रिय ! जमालीकुमार के अग्रकेश, अत्यन्त यत्नपूर्वक चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण के योग्य काट दे।" जमालीकुमार के पिता की आज्ञा सुन कर नापित अत्यंत प्रसन्न हुआ और दोनों हाथ जोड़कर बोला-"हे स्वामिन् ! में आपकी
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