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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
आज्ञानुसार करूँगा,"-इस प्रकार कह कर विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया। फिर सुगन्धित गन्धोदक से हाथ-पैर धोए और शुद्ध आठ पट वाले वस्त्र से मुंह बांधा, फिर अत्यन्त यत्नपूर्वक जमालीकुमार के, निष्क्रमण योग्य चार अंगुल अग्रकेश छोड़कर शेष केशों को काटा। इसके बाद जमालीकुमार की माता ने हंस के समान श्वेत वस्त्र में उन अग्र-केशों को ग्रहण किया। सुगन्धित गन्धोदक से धोया । उत्तम और प्रधान गन्ध तथा माला द्वारा उनका अर्चन किया और शुद्ध वस्त्र में बांधकर उन्हें रत्न करण्डिये में रखा । इसके बाद जमालीकुमार की माता, पुत्र वियोग से रोती हुई हार, जलधारा, सिन्दुवार वृक्ष के पुष्प और टूटी हुई मोतियों की माला के समान आंसू गिराती हुई इस प्रकार बोली-"ये केश हमारे लिए बहुत-सी तिथियां, पर्व, उत्सव, नागपूजादि रूप यज्ञ
और महोत्सवों में जमालीकुमार के अन्तिम दर्शन-रूप या बारम्बार दर्शनरूप होंगे"-ऐसा विचार कर उसने उन्हें अपने तकिये के नीचे रखा ।
..२४-तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मा-पियरो दोच्चं पि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रया-ति, दोच्चं पि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सेयापीयएहिं कलसेहिं पहावेंति सेया० पहावित्ता पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लूटेति, प० लूहित्ता सरसेणं गोसीसचन्दणेणं गायाई अणुलिंपति स० अणुलिंपित्ता णासा. णिस्सासवायवोज्झं, चक्खुहरं, वण्ण-फरिसजुत्तं, हयलालापेलवाऽ. इरेगं, धवलं, कणगखचितंतकम्म, महरिहं, हंसलक्खणपडसाडगं परिहिंति, परिहित्ता हारं पिणधेति, पिणद्धित्ता अद्धहारं पिणधेति,
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