________________
भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाओ और एक लाख सोनैया देकर नाई को बुलाओ । उपर्युक्त आज्ञा सुन कर हर्षित और तुष्ट हुए सेवकों ने हाथ जोड़कर स्वामी के वचन स्वीकार किये और भंडार में से तीन लाख सोनंया ( सुवर्ण मुद्रा ) निकाल कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाए तथा नाई को बुलाया । जमालीकुमार के पिता के सेवक पुरुषों द्वारा बुलाये जाने पर नाई बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने स्नानादि किया और अपने शरीर को अलंकृत किया । फिर जमाली कुमार के पिता के पास आया ।
१७३६
उवागच्छित्ता करयल जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पियरं जएणं विजपणं वद्धावे; जणं विजएणं वद्धावित्ता एवं वयासी - संदिसंतु णं देवाणुपिया ! जं मए करणिज्जं ? तरणं से जमालिस्स खत्तिय - कुमारस्स पिया तं कासवगं एवं वयासी - तुमं देवाणुप्पिया ! जमालिम्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं चउंगुलवज्जे णिक्खमणपाओगे अग्ग से कप्पेहि । तपणं से कासवगे जमालिस्स खत्तिय कुमारस्स पिउणा एवं वृत्ते समाणे हटु-तुट्ट-करयल जाव एवं सामी ! तहत्ताणाए विणणं वयणं पडिसुणेड़, पडिणित्ता सुरभिणा गंधोदणं हत्थ पाए पक्खालेह, पक्खालित्ता सुद्धाए अट्टपडला ए पोत्तीए मुहं बंध, मुहं बंधित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं चउरंगुलवज्जे णिक्खमणपाओगे अग्गकेसे कप्पेड़ । तरणं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गके से पडिन्छ, अग्गके से पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदपणं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org