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भगवती सूत्र - ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
कोई बियपुरिसे सहावें, कोई बियपुरिसे सदावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सिरिघराओ तिष्णि सय सहरसाई गहाय दोहिं समस्सेहिं कुत्तियावणाओ स्यहरणं च पडिग्गहं च आणेह, सयसहस्सेणं कासवगं सद्दावेह । तएणं ते कोटुंबिय पुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वृत्ता समाणा हट्ट तुट्ट करयल जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सिरिघराओ तिष्णि सय सहस्साईं, तहेव जाव कासवर्ग सहावेंति । तरणं से कासवए जमालिस्स खत्तिय - कुमारस्स पिउणा कोटुंबियपुरिसेहिं सदाविए समाणे हडे तुट्ठे पहाए कयबलिकम्मे जाव सरीरे, जेणेव जमालिस्स खत्तियकुमाररस पिया तेणेव उवागच्छड् ।
कठिन शब्दार्थ - देमो- देवें, पयच्छामो- प्रदान करें, किणा वा ते अट्ठी-तेरे क्या प्रयोजन है, कुत्तियावण - कुत्रिकापण - कु अर्थात् पृथ्वी, त्रिक अर्थात् तीन, आपण अर्थात् दुकान, स्वर्ग, मर्त्यं और पाताल रूप तीन लोकों में रही हुई वस्तु मिलने का देवाधिष्ठित स्थान, पडिग्गहं - पात्र, कासवग - काश्यपक - नाई, सिरिघर - श्री घर - खजाना, सयसहस्सालाख की संख्या, आणेह - लाओ, पिउणा - पिता द्वारा, एवं वृत्ता समाणा - इस प्रकार कहने पर ।
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भावार्थ - अभिषेक करने के बाद जमालीकुमार के माता-पिता ने हाथ जोड़ कर यावत् उसे जय विजय शब्दों से बधाया । फिर उन्होंने उससे कहा"हे पुत्र ! हम तेरे लिए क्या देवें ? तेरे लिए क्या कार्य करें ? तेरा क्या प्रयोजन है ?" तब जमालीकुमार ने इस प्रकार कहा - 'हे माता-पिता ! में कुत्रिकाप ग से रजोहरण और पात्र मंगवाना तथा नापित को बुलाना चाहता हूँ ।' तब जमाली कुमार के पिता ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - "हे देवानुप्रियों ! शीघ्र ही भंडार में से तीन लाख सोनंया निकालो । उनमें से दो लाख सोनैया देकर
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