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भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
जाव महया वेणं महया महया णिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचति ।
कठिन शब्दार्थ - आसिय-पानी छिड़कना, संमज्जिओवलितं-साफ कराकर लिपाना, महत्थं-महान् अर्थवाला, महरिहं - महापूज्य, महग्धं - महामूल्यवान्, निसियावेंति - बिठाते हैं, भोज्जाणं भूमि संबंधी 1
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पिता ने कौटुम्बिक
भावार्थ - २३ - इसके बाद जमाली क्षत्रियकुमार के पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही इस क्षत्रियकुंड ग्राम नगर के बाहर और भीतर पानी का छिटकाव करो । झाड़-बुहार “कर जमीन को साफ करो, इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार कार्य करके उन पुरुषों ने आज्ञा वापिस सौंपी। इसके पश्चात् उसने सेवक पुरुषों से इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र इस जमाली क्षत्रियकुमार का महार्थ, महामूल्य, महापूज्य ( महान् पुरुषों के योग्य) और विपुल निष्क्रमणाभिषेक की तैयारी करो । सेवक पुरुषों ने उसकी आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा वापिस सौंपी। . इसके पश्चात् जमाली क्षत्रियकुमार के माता-पिता ने उसे उत्तम सिंहासन पर पूर्व की ओर मुंह करके बैठाया । और एक सौ आठ सोने के कलशों से इत्यादि राजप्रश्नीय सूत्र में कहे अनुसार यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से सर्वऋद्धि द्वारा यावत् महा शब्दों द्वारा निष्क्रमणाभिषेक से अभिषेक करने लगे ।
महा महया क्खिमणाभिसेपणं अभिसिंचित्ता करयल - जाव जपणं विजपणं वद्धावेंति, जपणं विजपणं वद्धावित्ता एवं वयासीभण जाया ! किं देमो, किं पयच्छामो, किणा वा ते अट्टो ? तपणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा- पियरो एवं वयासी - इच्छामि गं अम्म-याओ कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणिउं कासवगं च सद्दाविडं । तरणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया
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