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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
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आदेश और समादेश, इस प्रकार चार-चार भेद होते है । किसी खास साधु के लिये बनाया गया आहार यदि वही ले, तो 'आधाकर्म' है और यदि दूसरा साधु ले, तो 'औद्देशिक' है। आधाकर्म पहले से ही किसी खास के निमित्त से बनाया जाता है । औद्देशिक साधारण दान के लिये पहले या पीछे कल्पित किया जाता है ।
३ मिश्रजात-अपने लिये और साधु के लिये एक साथ पकाया हुआ आहार 'मिश्रपात' कहलाता है । इसके तीन भेद हैं । यथा-१ यावदर्थिक, २ पाखण्डीमिथ और ३ साधुमिश्र । जो आहार अपने लिये और सभी याचकों के लिये इकट्ठा बनाया जाय, वह 'यावदथिक' है । जो अपने लिये और बाबा, सन्यासियों के लिये इकट्ठा बनाया जाय, वह 'पाखण्डीमिश्र' है और जो अपने लिये और साधुओं के लिये इकट्ठा बनाया जाय, वह 'साधुमिश्र' है।
- ४ अध्यवपूरक-साधुओं का आगमन सुनकर आधण में अधिक बढ़ा देना अर्थात् अपने लिये बनते हुए भोजन में साधुओं का आगमन सुनकर उनके निमित्त से और मिला देना।
५ पूतिकर्म-शुद्ध आहार में आधाकर्मादि का अंश मिल जाना—'पूतिकर्म' है। आधाकर्मादि आहार का थोड़ा-सा अंश भी शुद्ध और निर्दोष आहार को सदोष बना देता है। .., ६ क्रीत-साधु के लिये मोल लिया हुआ आहारादि।
७ पामिच्चे (प्रामित्य)-साधु के लिये उधार लिया हुआ आहारादि ।
८ आछेदय-निर्बल व्यक्ति से या अपने आश्रित रहने वाले नौकर चाकर और पुत्र आदि से आहारादि छीन कर साधु को देना ।
९ अनिःसृष्ट-किसी वस्तु के एक से अधिक स्वामी होने पर सब की इच्छा के बिना देना, 'अनिःसृष्ट' है ।
१० अभ्याहृत-साधु के लिये गृहस्थ द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर या एक गाँव से दूसरे गांव सामने लाया हुआ आहारादि ।
११ कान्तरभक्त-वन में रहे भिखारी लोगों के निर्वाह के लिये तैयार किया हुआ आहारादि ।
१२ दुभिक्षभक्त-दुभिक्ष (दुष्काल) के समय, भिखारी लोगों के निर्वाह के लिये तैयार किया हुआ आहारादि।
१३ ग्लानभक्त-रोगियों के लिये तैयार किया हुआ आहारादि । १४ बालिकाभक्त-दुदिन अर्थात् वर्षा के समय भिखारियों की भिक्षा कहां और
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