________________
१७.३०
भगवती सूत्र-श. ९. उ. ३३ जमाली चरित्र
नहीं कर सकते । इसलिए जब तक हम जीवित हैं तब तक तू गहस्थवास में रह और हमारे काल-धर्म को प्राप्त होने पर यावत् दीक्षा लेना।
२२-तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासी-तहा वि णं तं अम्म-याओ ! जं णं तुभे ममं एवं वयह, एवं खलु जाया ! णिग्गंथे पावयणे सच्चे, अणुत्तरे, केवले तं चेव जाव पवइहिसि; एवं खलु अम्मयाओ ! णिग्गंथे पावयणे कीवाणं, . कायराणं, कापुरिसाणं, इहलोगपडिबद्धाणं, परलोगपरंमुहाणं, विसयतिसियाणं दुरणुचरे पागयजणस्स; धीरस्त, णिन्छियस्स, ववसियस्स णो खलु एत्थं किंचि वि दुक्करं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्म-याओ ! तुन्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे संमणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए । तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो जाहे णो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य, विसयपडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य, पण्णवणाहि य आघवित्तए वा, जाव विष्णवित्तए वा, ताहे अकामाई चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स णिक्खमणं अणुमण्णित्था।
कठिन शब्दार्थ-कापुरिसाण-डरपोक मनुष्य के लिए, इहलोग-पडिबवाण-इस लोक से आबद्ध (आसक्त), परलोगपरंमुहार्ण-परलोक से परान्मुख (विमुख), विसयतिसियाणविषयों की तृष्णावाले, दुरणचरे-आचरण दुष्कर, पागयजणस्स-प्राकृतजन-साधारण मनुष्य के लिए, णिच्छियस्स-निश्चित (निश्चयवाले), ववसियस्स-निर्णय किये हुए, णिक्खमणंनिष्कमण (त्यागकर निकलने) का, अणुमणिस्था-अनुमति दी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org