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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३३ जमाली चरित्र
इ वा, मिस्सजाए इ वा, अझोयरए इ वा, पूइए इ वा, कीए इवा, पामिच्चे इ वा, अच्छेजे इ वा, अणिसटे इ वा, अभिहडे इ वा, कंतारभते इ वा, दुभिक्खभत्ते इ वा, गिलाणभत्ते इ वा, वदलिया. भते इ वा, पाहुणगभत्ते इ वा, सेज्जायरपिंडे इ वा, रायपिंडे इ वा, मूलभोयणे इ वा, कंदभोयणे इवा, फलभोयणे इवा, बीयभोयणे इवा, हरियभोयणे इ वा, भुत्तए वा पायए वा । तुम सि च णं जाया ! सुहसमुचिए, णो चेव णं दुहसमुचिए; णालं सियं, णालं उण्हं, णालं खुहा, णालं पिवासा, णालं चोरा, णालं वाला, णालं दंसा, णालं मसगा, णालं वाइय-पित्तिय-सेभिय-सण्णिवाइए विविहरोगायके, परिस्सहोवसग्गे उदिण्णे अहियासित्तए । तं णो खलु जाया.! अम्हे इच्छामो तुम्भं खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहिं ताव जाया ! जाव ताव अम्हे जीवामो; तओ पच्छा. अम्हेहिं जाव पवइहिसि ।
कठिन शब्दार्थ-णो संचाएंति-समर्थ नहीं हुए, विसयाणुलोमाहि-विषय के अनुकूल, विसयाडिकूलाहि-विषय के प्रतिकूल, संजमभयम्वेयणकराहि-संयम में भय एवं उद्वेग करने वाली, अणुतरे-सर्वोत्तम (प्रधान), अहीव एगंतदिट्ठीए-सर्प की तरह एकांत दृष्टिवाला, खुरो इव एगंतधारए-उस्तरे की तरह एक धारवाला, वालुया कवले इव णिस्साए-रेत के निवाले की तरह निःस्वाद, पडिसोयगमणाए-प्रतिश्रोत (बह व के सामने) गमन, दुत्तरोदुस्तर (तैरना कठिन), तिनं कमियन्वं-तीक्ष्ण खड्गादि पर चलने जैसा, गरुयं लंबेयव्वंभारी शिला उठाने जैसा, असिधारगं वयं चरियवं-तलवार की धार पर चलने जैसा, सहसमचिए-सुख के योग्य, नालं-असमर्थ, वाला-व्याल (सर्पादि), सेभिय-श्लैष्मिक, सण्णिवाइय-सन्निपातजन्य, विविहरोगायंके-विविध प्रकार के रोग-आतंक से, परिस्सहोवसग्गेपरीपह और उपसर्ग, उदिण्णे-उदय होने पर, अहियासित्तए-सहन करने में।
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