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'भगवती सूत्र - ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
रंग, मच्त्र - मृत्यु, साहिए - साध्य, दाइय-दायाद (बन्धु आदि भागीदार), सामणे - सामान्य । भावार्थ-२०-तब जमाली क्षत्रियकुमार ने अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा - " आपने धन सम्पत्ति आदि के लिए कहा है, परन्तु हे माता-पिता ! यह हिरण्य, सुवणं यावत् सर्व सारभूत द्रव्य अग्नि, चोर, राजा और मृत्यु (काल) के लिए साधारण ( अधीन ) है । बन्धु इसे बँटा सकते हैं । अग्नि यावत् दायाद ( भाई आदि हिस्सेदार) के लिए सामान्य ( विशेष अधीन ) है । यह अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है । इसे पहले या पीछे, एक न एक दिन अवश्य छोड़ना पडेगा । · हममें से पहले कौन जायगा और पीछे कौन जायगा, यह भी कौन जानता है ? इसलिए आप मुझे दीक्षा की आज्ञा दीजिये ।"
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२१ - तणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मन्याओ जाहे णो संचाएंति विसयाणुलोमाहिं बहूहिं आघवणाहि य, पण्णवणाहि य, सष्णवणाहि य, विष्णवणाहि य आघवेत्तए वा, पण्णवेत्तए वा, सण्णवेत्तए वा, विष्णवेत्तए वा, ताहे विसय डिकूलाहिं संजमभयुब्वेयणकराहिं पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं वयासी एवं खलु जाया ! णिग्गंथे पावणे सच्चे, अणुत्तरे, केवले जहा आवस्सए, जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ । अहीव एतदिट्टीए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव णिस्साए, गंगा वा महाई डिसोयगमणयाए, महासमुद्दो वा भुयाहिं दुत्तरो; तिक्खं कमियव्वं, गरुयं लंबेयव्वं, असिधारगं वयं चरियव्वं । णो खलु कपड़ जाया ! समणाणं णिग्गंथाणं आहाकम्मिए इवा, उद्देसिए
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