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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
इड्ढि-सकारसमुदए, तओ पच्छा अणुहूयकल्लाणे, वड्ढियकुलवंस जाव पबाहिसि ।
___ कठिन शब्दार्थ-अज्जय-दादा, पज्जय-परदादा, पिउपज्जय-पिता का पर दादा, सावएज्जे-स्वापतेय-धन, अलाहि-पर्याप्त, पकाम-प्रकाम (अतिशय), परिभाएउ-वितरण करने ।
भावार्थ-१९-इसके पश्चात् जमालीकुमार के माता-पिता ने इस प्रकार कहा-“हे पुत्र ! यह दादा, परदादा और पिता के परदादा से प्राप्त बहुत हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र, विपुल धन, कनक यावत् सारभूत द्रव्य विद्यमान है । यह द्रव्य इतना है कि यदि सात पीढ़ी तक पुष्कल (खुले हाथों) दान दिया जाय, भोगा जाय और बांटा जाय, तो भी समाप्त नहीं हो सकता। अतः हे पुत्र ! मनष्य सम्बन्धी विपुल ऋद्धि और सम्मान का भोग कर। सुख का अनुभव करके और कुल-वंश की वृद्धि करके पीछे यावत् तू दीक्षा लेना।
२०-तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासी-तहा वि णं तं अम्म-याओ ! जंणं तुम्भे ममं एवं वयहइमं च ते जाया ! अज्जय-पज्जय-जाव पव्वइहिसि; एवं खलु अम्मयाओ ! हिरण्णे य, सुवण्णे य, जाव सावएज्जे अग्गिसाहिए, चोरसाहिए, रायसाहिए, मच्चुसाहिए, दाइयसाहिए, अग्गिसामण्णे जाव दाइयसामण्णे, अधुवे, अणिइए, असासए, पुचि वा पच्छ। वा अवस्सं विप्पजहियब्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ तं चेव जाव पवइत्तए।
कठिन शब्दार्थ-अग्गिसाहिए-अग्नि-साध्य (अग्नि का विभाग)अग्नि के लिए साधा
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