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________________ भगवती मूत्र-स. ९. उ. ३३ जमाली चरित्र १७२५ करनेवाला, अप्पकालिया-अल्पकालीन । भावार्थ-१८-माता-पिता की उपरोक्त बात के उत्तर में जमाली क्षत्रिय कुमार ने अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा-“हे माता-पिता! आपने कहा कि-'विशाल कुल में उत्पन्न तेरी ये आठ स्त्रियां हैं, इत्यादि ।' हे मातापिता ! ये मनुष्य सम्बन्धी काम भोग निश्चित रूप से अशुचि और अशाश्वत हैं । वात, पित्त, श्लेष्म (कफ), वीर्य और रुधिर के झरने हैं । मल, मूत्र, श्लेष्म (खंखार), सिंघाण (नासिका का मेल), वमन, पित्त, राध, शुक्र और शोणित से उत्पन्न हुए हैं। ये अमनोज, बुरे, मूत्र और विष्ठा से भरपूर तया दुर्गन्ध से युक्त हैं। मृत कलेवर के समान गन्धवाले एवं उच्छ्वास ओर निश्वास से उद्वेग उत्पन्न करने वाले हैं। बीभत्स, अल्प काल रहने वाले, हलके और कलमल (शरीर में रहा हुआ एक प्रकार का अशुद्ध द्रव्य) के स्थानरूप होने से दुःखरूप है और सभी मनुष्यों के लिए साधारण है। काम-भोग, शारीरिक और मानसिक अत्यन्त दुःखपूर्वक साध्य है । अज्ञानी पुरुषों द्वारा सेवित तथा उत्तम पुरुषों द्वारा सदा निन्दनीय हैं, अनन्त संसार की वृद्धि करने वाले है, परिणाम में कटु फलवाले हैं. जलते हुए घास के पूले के स्पर्श के समान दुःखदायो तथा कठिनता से छुटने वाले हैं, दुःखानुभव वाले हैं। य काम-भोग मोक्षमार्ग में विघ्नरूप हैं। हे माता-पिता! यह भी कौन जानता है कि हमारे में से कौन पहले जायगा और कौन पीछे । इसलिए मुझे दीक्षा लेने की आज्ञा दीजिए। १९-तपणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो एवं वयासी-इमे य ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहुहिरण्णे य, सुवण्णे य, कंसे य, दूमे य, विउलधण-कणग-जाव संतसारसावएज्जे, अलाहि जाव आसत्तमाओ कुल-वंसाओ पकामं दाउं, पकामं भो, परिभाएउं, तं अणुहोहि ताव जाया ! विउले माणुस्सए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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