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________________ १७२४ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३३ जमाली चरित्र इसलिये हे पुत्र ! तू इन स्त्रियों के साथ मनुष्य सम्बन्धी विपुल काम भोगों का भोग कर । जब विषय की उत्सुकता नहीं रहे और भुक्त भोगी हो जाय तब हमारे कालधर्म को प्राप्त हो जाने पर यावत् तू दीक्षा लेना। १८-तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासीतहा वि णं तं अम्म-याओ ! ज णं तुम्भे मम एयं वयह-इमाओ ते जाया ! विपुलकुल जाव पव्वइहिसि; एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सगा कामभोगा अमुई, असासया, वंतासवा. पित्तासवा, खेलासवा, सुवकासवा, सोणियासवा, उच्चार-पासवण खेल-सिंघाणग-वंतपित-पूय-सुक्क सोणियसमुभवा, अमणुण्णदुरूव-मुत्त-पूइय-पुरिसपुण्णा, मयगंधुस्सास-असुभ-णिस्सासउव्वेयणगा, बीभत्था, अप्पकालिया, लहुसगा, कलमलाहिवासद्वखबहुजणसाहारणा, परिकिले. सकिन्छटुक्खसज्झा, अबुहजणणिसेविया, सया साहुगरहणिज्जा, अणंतसंसारवद्धणा, कडगफलविवागा चुल्लिव अमुच्चमाणदुक्खाणुबंधिणो, सिद्धिगमणविग्धा; से केस णं जाणइ अम्मयाओ ! के पुट्विं गमणयाए के पच्छा ? तं इच्छामि णं अम्म-याओ ! जाव पव्वइत्तए । कठिन शब्दार्थ-वंतासवा पित्तासवा-वात और पित्त से वहनेवाला, खेलासवा, सुक्कासवा, सोणियासवा-श्लेष्म, शुक्र एवं शोणित के झरनेवाला, उच्चार-पासवण-विष्ठा मूत्र, समुन्भवा-उत्पन्न हुआ, पुइय पुरिस पुण्णा-पीप और विष्ठा से भरपूर, मयगंधुस्सास असुमहिस्सास उन्वेयणगा-मृतक जैसी गंधवाले उच्छ्वास और अशुभ निश्वास से उद्वेग उत्पन्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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