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भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
की सैकड़ों व्याधियों का निकेतन (स्थान) है, अट्ठियकछुट्ठियं - अस्थिरूप लकड़ी का बना है, छिराहारु जाल ओणद्ध संपिषद्धं नाड़ियों और स्मायु समूह में अत्यन्त लिपटा हुआ है, मट्टिय भंड व दुब्बलं - मिट्टी के बर्तन की तरह दुर्बल है, असुइ संकिलिट्ठ - अशुचि से भरपूर है, अणि विसव्वकाल संठप्पयं - अनिष्ट होने से सदैव शुश्रूषा करनी होती है, जरा-कुणिमजज्जरघर - जीर्ण मांस का जीर्ण घर ।
भावार्थ - १६ - जमाली क्षत्रियकुमार ने अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा - "हे माता-पिता ! आपने कहा - 'हे पुत्र ! यह तेरा शरीर उत्तम रूप, लक्षण व्यञ्जन और गुणों से युक्त है, इत्यादि यावत् हमारे कालगत होने पर तू दीक्षा लेना ।" परन्तु हे माता-पिता ! यह मनुष्य का शरीर दुःखों का घर है । अनेक प्रकार की व्याधियों का स्थान है । अस्थिरूप लकडी का बना हुआ है । नाडियों और स्नायुओं के समूह से वेष्टित है। मिट्टी के बर्तन के समान दुर्बल है । अशुचि का भण्डार है । निरन्तर इसकी सम्हाल करनी पड़ती है । जीर्णघर के समान सड़ना, गलना और विनष्ट होना इसका स्वभाव है । इस शरीर को पहले या पीछे एक दिन छोड़ना ही पडेगा। कौन जानता है कि हम में से पहले कौन जायेगा और पीछे कौन ? इसलिए आप मुझे आज्ञा दीजियें ।"
१७ -तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो एवं वयासी - इमाओ य ते जाया ! विपुलकुलवा लियाओ, सरिसियाओ, सरितयाओ, सब्वियाओ, सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वणगुणोववेयाओ, सरिसएहिंतो कुलेहिंतो आणिएल्लियाओ कलाकुसल - सव्वकाललालिय- सुहोचियाओ, मद्दवगुणजुत्त - णिउणविणओवयारपंडिय'विक्खणाओ, मंजुल मिय-महुरभणिय- विहसिय-विप्पेक्खियगडविलास-चिट्ठियविसारयाओ, अविकलकुल सीलसालिणीओ, विसुद्ध
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