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भगवती सूत्र-स. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
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तथा यौवनादि गुण है, अणुभूय-अनुभव किया हुआ।
भावार्थ-१५-जमाली क्षत्रियकुमार की बात सुनकर उसके माता-पिता ने इस प्रकार कहा-“हे पुत्र ! यह तेरा शरीर उत्तम रूप, लक्षण, व्यञ्जन (मस तिल आदि चिन्ह) और गुणों से युक्त है, उत्तम बल, वीर्य और सत्त्व सहित है, विज्ञान में विचक्षण है, सौमाग्यगुण से उन्नत है, कुलीन है, अत्यंत समर्थ है, व्याधि और रोगों से रहित है, निरुपहत, उदात्त और मनोहर है, पट (चतुर) पांच इन्द्रियों से युक्त और प्रथम युवावस्था को प्राप्त है, इत्यादि अनेक उत्तम गुणों से युक्त है । इसलिए हे पुत्र ! जबतक तेरे शरीर में रूप, सौभाग्य और यौवन आदि गुण हैं, तबतक तू इनका अनुभव कर। इसके पश्चात् जब हम कालधर्म को प्राप्त हो जायें और तुझे वृद्धावस्था प्राप्त हो जाय तब कुल-वंश की वृद्धि करने के पश्चात् निरपेक्ष होकर, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास दीक्षा लेना।"
. १६-तएणं से जमाली खत्तियकुम.रे अम्मा-पियरो एवं वयासीतहा विणं तं अम्म-याओ ! ज णं तुम्भे ममं एवं वयह-इमं च णं ते जाया ! सरीरगं तं चेव जाव पव्वइहिसि, एवं खलु अम्म-याओ ! माणुस्सगं सरीरं दुक्खाययणं, विविहवाहिसयसंणिकेयं, अट्ठियकट्ठट्ठियं, छिरा-हार-जालओणद्धसंपिण, मट्टियभंडं व दुब्बलं, असुइसंकिलिटुं, अणिट्ठवियसव्वकालसंठप्पयं, जराकुणिम-जज्जरघरं व सडण-पडण-विद्धंसणधम्मं, पुट्विं वा पच्छा वा अवस्सं विप्पजहियव्वं भविस्सइ; से केस णं जाणइ अम्मयाओ ! के पुट्विं तं चेव जाव पव्वइत्तए ।
कठिन शब्दार्थ-दुक्खाययणं-दुःखों का घर, विविहवाहिसयसंणिकेयं-विविध प्रकार
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