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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
चूड़ियाँ हाथों से गिर पड़ी और टूट कर चूर्ण हो गई । उसका उत्तरीय वस्त्र अस्तव्यस्त हो गया । मूर्छा द्वारा उसका वैतन्य विलुप्त होजाने से वह भारी शरीर वाली हो गई। उसके सुकुमाल केशपाश बिखर गये । कुल्हाड़ी से काटी हुई चम्पक लता के समान और उत्सव पूरा हो जाने पर इन्द्रध्वजदण्ड के समान उसके सन्धि बन्धन शिथिल हो गये । वह सभी अंगों से 'धस' करती हुई धरती पर गिर पड़ी। इसके बाद जमाली क्षत्रियकुमार की माता के शरीर को दासियों ने शीघ्र ही स्वर्ण कलशों के मुख से निकली हुई शीतल और निर्मल जलधारा का सींचन करके स्वस्थ बनाया और बाँस के बने हुए उत्क्षेपक (पंखों) तथा ताड़ पत्र के बने हुए पंखों द्वारा जल बिन्दु सहित पवन करके दासियों ने उसे आश्वस्त और विश्वस्त किया । स्वस्थ होते ही रोती हुई, आक्रन्दन करती हुई, शोक करती हुई और विलाप करती हुई वह जमालीकुमार की माता इस प्रकार कहने लगी-“हे पुत्र! तू मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम (मन गमता), आधारभूत, विश्वासपात्र, सम्मत, बहुमत, अनुमत आभूषणों की पेटी के तुल्य, रत्न स्वरूप, रत्न तुल्य, जीवन के उत्सव समान और हृदय को आनन्ददायक एक ही पुत्र है । उदुम्बर (गुलर) के पुष्प के समान तेरा नाम सुनना भी दुर्लभ है, तो तेरा दर्शन दुर्लभ हो, इसमें तो कहना ही क्या ? अतः हे 'पुत्र! तेरा वियोग मुझ से एक क्षण भी सहन नहीं हो सकता । इसलिए जब तक हम जीवित हैं, तब तक घर ही रह कर कुल वंश को अभिवृद्धि कर । जब हम कालधर्म को प्राप्त हो जायें और तुम्हारी वृद्धावस्था आ जाय, तब कुल वंश की वृद्धि करके तुम निरपेक्ष होकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास मुण्डित होकर अनगारधर्म को स्वीकार करना ।" ___१४-तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासीतहा विणं तं अम्म-याओ ! जं गं तुम्भे मम एवं वयह, तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इटे कंते तं चेव, जाव पव्वइहिसि; एवं
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