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भगवती मूत्र --श. ९. उ. ३३ जनाली चरित्र
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खलु अम्मयाओ ! माणुस्सए भवे अणेगजाइ-जरा-मरण-रोग-सारीरमाणसपकामदुक्ख-वेयण-वसण-सओवद्दवाभिभूए, अधुवे, अणिइए, असासए, संज्झन्भरागसरिसे, जलबुब्बुयसमाणे, कुसग्गजलबिंदु. सण्णिभे, सुविणगदंसणोवमे, विज्जुलयाचंचले, अणिच्चे, सडणपडणविधंसणधम्मे, पुट्विं वा पच्छा वा अवस्सं विप्पजहियव्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मयाओ ! के पुट्विं गमणयाए, के पच्छा गमणयाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्म जाव-पव्वइत्तए ।
कठिन शब्दार्थ--वसणसओवद्दवाभिभूए-सैकड़ों व्यसनों (दुःखों) से पीड़ित, अधुवेअध्रुव, अणिइए-अनियत, असासए-अशाश्वत्, संज्झन्भरागसरीसे-संध्या के सुन्दर रंग जैसा, जलबब्बयसमाणे-पानी के बुदबुदे जैसा, कुसग्गजलबिदुसण्णिभे-घास पर रहीं हुई जलबिन्दु के समान, सुविणगदसणोवमे-स्वप्न दर्शन जैसा, विज्जुल्लयाचंचले-विजली के समान चंचल, अणिच्च-अनियत, सडणपडणविद्धंसणधम्मे-सड़न-गिरन और विध्वंशन धर्मवाला, विप्पजहियव्वे-त्याग करने योग्य ।
भावार्थ-१४-तब राजकुमार जमाली ने अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा-“हे माता-पिता ! अभी जो आपने कहा कि-'हे पुत्र ! तू हमें इष्ट, कांत, प्रिय आदि है यावत् हमारे कालगत होने पर तू दीक्षा अंगीकार करना" इत्यादि। परन्तु हे माता-पिता ! यह मनुष्य जीवन जन्म,, जरा, मरण, रोग, व्याधि आदि अनेक शारीरिक और मानसिक दुःखों की अत्यन्त वेदना से और सैंकडों व्यसनों (कष्टों) से पीडित है। यह अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है । संध्याकालीन रंगों के समान, पानी के परपोटे (बुदबुदे) के समान, कुशाग्र पर रहे हुए जल-बिंदु के समान, स्वप्न-दर्शन के समान तथा बिजली की चमक के समान चञ्चल और अनित्य है । सड़ना, पड़ना, गलना और विनष्ट होना इसका धर्म (स्वमाव) है।
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