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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३३ जमाली चरित्र
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से निकला, यावत् सिर पर कोरण्ट पुष्प की माला युक्त छत्र धराता हुआ और महासुभटों के समूह से परिवृत वह जमालीकुमार क्षत्रियकुंड ग्राम नगर के मध्य होता हुआ अपने घर के बाहर की उपस्थानशाला में आया और घोडों को रोक कर रथ से नीचे उतरा । वह अपने माता-पिता के पास आया और जय-विजय शब्दों से बधाकर इस प्रकार बोला-“हे माता पिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्म सुना है । वह धर्म मझे इष्ट, अत्यन्त इष्ट और रुचिकर हुआ है ।"
जमालीकुमार की यह बात सुनकर उसके माता-पिता ने कहा-'हे पुत्र! तू धन्य है, तू कृतार्थ है, तू कृतपुण्य है और कृतलक्षण है कि तूने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्म सुना है और वह धर्म तुझ इष्ट, अत्यन्त इष्ट और रुचिकर हुआ है।
१२-तएणं से जमालिखत्तियकुमारे अम्मा-पियरो दोच्चं पि एवं वयासी-एवं खलु मए अम्मयाओ ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, जात्र अभिरुइए । तएणं अहं अम्मयाओ ! संसारभउन्विग्गे, भीए जम्म-जरा-मरणेणं, तं इच्छामि गं
अम्म-याओ ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
कठिन शब्दार्थ-संसार भउठिवग्गे-संसार के भय से उद्विग्न हुआ, भीए-डरा, अब्भ. गुण्णाए-आज्ञा होने पर।
भावार्थ-१२-जमाली क्षत्रियकुमार ने दूसरी बार अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा-'हे माता-पिता ! मैं संसार के भय से उद्विग्न हुआ हूँ, जन्म, जरा और मरण से भयभीत हुआ हूँ। अतः हे माता-पिता ! मैं आपकी आज्ञा
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