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भगवती सूत्र-ग. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
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होने पर श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास मुण्डित होकर गृहवास का त्याग करके अनगार-धर्म स्वीकार करना चाहता हूँ।"
विवेचन-श्रद्धा:-जहाँ तर्क का प्रवेश न हो--मे धर्मास्तिकायादि द्रव्यों पर, व्याख्याता के कथन से विश्वाम कर लेना 'श्रद्धा' है। .
प्रतीति-व्याख्याता के साथ तर्क-वितर्क करके युक्तियों द्वारा पुण्य पाप आदि को समझ कर विश्वास करना 'प्रतीति' है।
रुचि-व्याख्याता द्वारा उपदिष्ट विषय में श्रद्धा करके उसके अनुसार तप चारित्र आदि सेवन करने की इच्छा करना 'रुचि' है।
निग्रंथ-प्रवचन 'तथ्य' है अर्थात् आप्त पुरुषों के द्वारा कथन किया गया होने के कारण अभिमत है । यह निग्रंथ-प्रवचन 'अवितथ' है, अर्थात् जिस प्रकार इस समय अभिमत है, उसी प्रकार यह सदा-काल अभिमत रहता है, किन्तु कभी भी अनभिमत नहीं होता। - भगवान् के पास धर्म श्रवण कर जमाली क्षत्रियकुमार को उस पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि हुई । वह उसके अनुसार प्रवृत्ति करने को तत्पर हुआ और अपने माता-पिता मे दीक्षा की आज्ञा माँगने लगा।
१३-तएणं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया तं अणिटुं, अकंतं, अप्पियं, अमणुण्णं, अमणामं असुयपुठ्वं गिरं सोच्चा, णिसम्म, सेयागयरोमकूवपगलंतविलीणगत्ता, सोगभरपवेवियंगमंगी, णित्तेया, दीण-विमणवयणा, करयलमलियव्य-कमलमाला, तक्षण
ओलुग्गदुब्बलसरीरलावण्णसुण्णणिच्छाया, गयसिरीया, पसिढिलभूसण-पडतखुण्णियसंचुण्णियधवलवलयपन्भट्ठउत्तरिज्जा, मुच्छावसणटुचेयगरई, सुकुमालविकिण्णकेसहत्था, परसुणिकत्त व चंपगलया, णिवत्तमहे व इंदलट्ठी, विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि धसत्ति
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