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भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
भडचडगर जाव परिक्खित्ते, जेणेव खत्तिय कुंडग्गामे णयरे तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं णयरं मज्झमज्झेणं, जेणेव सए गेहे, जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छछ, उवागच्छित्ता तुरए णिगिण्हइ, णिगिरिहत्ता रहं ठवेइ, टवित्ता रहाओ पचोरुहर, रहाओ पचोरुहित्ता जेणेव अभितरिया उबाणसाला, जेणेव अम्मा- पियरो तेणेव उवागच्छछ, उषागच्छित्ता अम्मा-पियरो जपणं विजएणं वद्धावेड़, जएणं विजएणं वद्धावित्ता एवं वयासी - एवं खलु अम्म-याओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियं धम्मे णिसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए । तरणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा- पियरो एवं क्यासी-धणे सि णं तुमं जाया ! कयत्थे सि णं तुमं जाया ! कयपुणे सि णं तुमं जाया !, कयलक्खणे सि णं तुमं जाया ! जं णं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे णिसंते, से विय धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुहए ।
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कठिन शब्दार्थ- इच्छिए - इच्छित - इप्ट, पडिच्छिए - प्रतीच्छित - अत्यन्त इष्ट, अभिहहए-अभिरुचित-रुचिकर, कयत्थे - कृतार्थ हुए, कयपुष्णे - कृतपुण्य ।
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भावार्थ - ११ - जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जमाली से पूर्वोक्त प्रकार से कहा तो जमाली हर्षित और संतुष्ट हुआ । उसने भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा करके वन्दना नमस्कार किया । फिर चार घंटा वाले अश्वरथ पर चढ़कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास से और बहुशालक उद्यान
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