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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
गुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ।
__ कठिन शब्दार्थ-रोएमि-मैं रुचि करता हूँ, अठभुढेमि-म उद्यत (तत्पर) होता हूँ, एवमेयं-इसी प्रकार है, तहमेयं-उसी प्रकार सत्य-तथ्य है, अवितह-अवितथ-सत्य, असंदिद्ध
सन्देह रहित ।
भावार्थ-१०-श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास धर्म सुन कर और हृदय में धारण करके जमाली क्षत्रियकुमार हर्षित और संतुष्ट हृदय वाला हुआ यावत् खडे होकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार किया और इस प्रकार कहा-“हे भगवन् ! मैं निग्रंथ-प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ, हे भगवन् ! में निग्रंथ-प्रवचन पर विश्वास करता हूँ, हे भगवन ! में निग्रंथ-प्रवचन पर रुचि करता हूँ, हे भगवन् ! मैं निग्रंथ-प्रवचन के अनुसार प्रवृत्ति करने को तत्पर हुआ हूं। हे भगवन् ! यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सत्य है, तथ्य है, असंदिग्ध है, जैसा कि आप कहते है। हे देवानप्रिय ! मैं अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर, गृहवास का त्याग करके, मुण्डित होकर आपके पास अनगार-धर्म को स्वीकार करना चाहता हूँ।"
भगवान ने कहा;-“हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो, धर्म-कार्य में समयमात्र भी प्रमाद मत करो।"
११-तएणं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ट-तुटे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता तामेव चाउग्घंटं आसरहं दुरूहेइ, दुरूहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालओ चेइयाओ पडिणिरखमइ, पडिणिवखमित्ता सकोरंट ० जाव धरिज्जमाणे णं महया
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